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________________ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद] [२१५ कान्तवाक्यं समाकर्ण्य कम्पिता फिल कामिनी । बने थातेन वा बल्ली कोमलाङ्गी सुगन्धिनी ।।१३।। अन्वयार्थ—(कोमलाङ्गो) सुकुमार अङ्गवाली (सुगन्धिनी) सुवासित गात्र वाली (कामिनी) पत्नी मदन सुन्दरी (कान्तवाक्यम् ) पति के वाक्य (समाकर्ण्य) सुनकर (किल) निश्चय से (वने) वन में (वातेन) वायु से (वल्ली) लता (इव) समान (वा) मानों (कम्पिता) कांपने लगः भावार्थ-अपने प्राणवल्लभ पति के परदेश गमन के वचन सुनते ही मदनसुन्दरी अवाक रह गई। उसे लगा मानों उस पर वज्रपात हुआ । वह अप्रत्याशित भय से थरथराने लगी। उस समय वह सुकुमारी, सुगन्धित वस्त्रालङ्कारों से सज्जित ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों वन प्रदेश में फल-फूलों से भरी पवन से प्रेरित सुन्दर लता ही हो ।।१३।। उवाच सुन्दरी सा च वियोग सोडमक्षमा । अहं ते पमिनीवोच्च स्करस्यदिवि प्रभो ॥१४॥ अन्वयार्थ--(सा) वह मदनसम्दरी (सुन्दरी) सौभाग्यशालिनी (उत्राच) बोली (प्रभो !) हे स्वामिन् (दिवि) दिन में (भास्करस्य) सूर्य के ताप को (पयिनी) कमलिनी जिस प्रकार सहन नहीं कर सकती (इव) इसी प्रकार (ते) आपके (वियोगम् ) विरह को (अहम ) मैं (सोढुम ) सहन करने में (अक्षमा) असमर्थ हूँ। भावार्थ—पश्मिनी चन्द्रोदय के साथ प्रफुल्ल होती है, खिलती है । सूर्य के उदय होते ही वह कमला जाती है-मन्द हो जाती है क्योंकि चन्द्र का वियोग उसे सहन नहीं होता । अतः मैनासुन्दरो अपने पति देव से प्रार्थना करती है कि आप चन्द्र हैं और मैं कमलिनी हैं। मापका वियोग सहन करने की मुझमें क्षमता नहीं है । आपके परदेश गमन होने पर मैं कमलिनी के समान प्राण विहीन हो जाऊंगी। आपका संयोग ही मेरस जीवन है ।।१४।। इसलिए ततस्त्वया समं नाथ समेष्यामि सुनिश्चितम् । ज्योत्स्ना चन्द्रेण हि यथा गच्छतिनित्यशः ॥१५॥ अन्वयार्थ- (ततः) इसलिए (नाथ ! ) हे प्रभो (यथा) जिस प्रकार (नित्यशः) प्रतिदिन (ज्योत्स्ना) चाँदनी (चन्द्रेण) चाँद के (सार्थ) साथ (हि) निश्चय से (गच्छति) गमन करती है (तथा तथा उसी प्रकार (त्वया) अापके (समम् ) साथ (सुनिश्चितम ) अवश्य ही (समेष्यामि) साथ-साथ रहूँगी-चलू गो। भावार्थ - मदनसुन्दरी अपने प्राणप्रिय पति से प्रार्थना करती है कि है कि हे नाथ आप चन्द्र हैं मैं चन्द्रिका हूँ, जिस प्रकार चन्द्रिका चन्द्रमा को छोड़कर एक क्षणमात्र भी नहीं
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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