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________________ I श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद ] इत्येवं जिनधर्मज्ञा निश्चला सा गुणोज्वला । मातरं बोधयामास सतो संतोषशालिनी ।। १२१ ॥ [ १२५ अन्वयार्थ - - ( इत्येवम ) इस प्रकार नाना युक्ति प्रमाण बाक्यों से (सा) उस मदन सुन्दरी ( गुणोज्वला ) जो अपने गुणों से प्रकाशमान ( जिनधर्मज्ञा ) जिनधर्म की मर्मज्ञ ( निश्चला ) सुढ सम्म् (संतोषी (सती) शीलवती ने ( मातरम् ) अपनी जननी को ( बोधयामास ) समझाया 1 भावार्थ - यद्यपि मैना के समक्ष विषम परिस्थिति थी, किन्तु वह तनिक भी उससे घबराई नहीं । विवेक इसी का नाम है। भयंकर विपत्ति आने पर भी विवेक न छोड़े, कर्तव्यच्युत न हो । वह शील, संयम, धैर्य, आदि गुणों की खान थी। सुवर अग्नि में तपकर, होरा शान पर चढकर, मेंहदी पिसकर चमकते हैं, रंग देते हैं उसी प्रकार इस भाग्य परीक्षा की बेदी पर बलि चढाई गई मैना सुन्दरी के गुण समूह चमक उठे। वह जिनधर्म के मर्म को भलिभांति जानने वाली और शील सम्यक्त्व से विभूषित थी। पूर्ण विवेक से उसने अपनी चिलखती माता को आश्वासन दिया। भले प्रकार समझाया । स्वयं श्रानन्द से अपने सतीत्व और सन्तोष चल पर पिता द्वारा किये कार्य को स्वीकार किया। साम्यभाव की पुतली ही उस समय प्रतीत हो रही थी । परन्तु जनता में सभी एक समान तो होते नहीं । कौन किसका मुंह बन्द करे । चारों ओर नाना आलोचना- प्रत्यालोचना होने लगी ।। १२१|| निन्दन्तिस्म तदा केचिद्राजानं युक्तिवजितम् । केचिद्राज्ञश्च केचिच्च विधातारं परेजनाः ॥ १२२ ॥ 1 अन्वयार्थ ( तदा) विवाह हो जाने पर ( केचिद्) कोई (युक्तिवर्जितम् ) युक्ति विहीन ( राजानम् ) राजा को ( निन्दन्तिस्म) निन्दनीय कहते थे तो (केचिद्) कुछ लोग (राज्ञीम् ) रानी को (च) और ( परेजनाः) दूसरे जन ( विधातारम् ) भाग्य की निन्दा करते थे। भावार्थ- - इस अयोग्य पाणिग्रहण संस्कार के होने पर कुछ लोग राजा की निन्दा करते थे तो कुछ लोग रानी की निन्दा में जुट गये। माँ की ममता विशेष होती है । इसने राजा को क्यों नहीं रोका। क्या इसकी ( रानी की) अनुमति बिना विवाह होता ? कोई कहता, माता-पिता दोनों ही अन्धे हो गये ? ऐसा तो कोई सामान्य मनुष्य भी नहीं करता ? भला कौन अपनी दुलारी को जानकर कुए में डालेगा ? अन्य कुछ लोग कहते माता-पिता क्या करें ? यह भाग्य की विडम्बना है। भाग्य बलवान है । पाप कर्म तीव्ररूप में उदय आत है तो सबकी मति फिर जाती है। कन्या का कहना ही सत्य है जीव अपने किये कर्मों का फल स्वयं ही भोगता है । 'अब पछताये होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत ।" इस प्रकार नानाप्रकार की बाचालता फैल गई ।। १२२|
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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