________________
८२ ]
[थीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद
चरणों में विनयावनत नमस्कार कर रहे थे । भगवान् के दोनों चरण विकसित कमलवत दीख रहे थे आचार्य श्री कल्पना करते हैं कि मानों उन मुरासुर और नृपतियों के मुकुटों में जटित माणिक्य रत्नों की कान्ति रूपी जल से ही ये प्रक्षानित हैं। वे भगवान जगत के त्राता भय निवारक और संसार समुद्र से तारने वाले थे।
इति श्री सिद्धचक्र पूजातिशय समन्वित श्रीपाल महाराज चरिते भट्टारक श्री सकल कीति विरचिते पीठिका व्यावर्णनो नाम प्रथम परिच्छेदः