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उपोद्घातात
सविसहस्स, जदि इत्पी इन्धि निरिमति इरिथगिद्देसो, अब इत्थी पुरिसणघुसए णिदिसह मो अभिरेसो, अदि पुरिलो श्रीवीरस्य
पुरित मिदिसति पुरिमणिदेसों, अह पुरिसो इन्विणसए निहिसह सो अनिदेसो, एवं जदि निर्दिलियब लिपिसमे कसो PIममाः आवश्यकाति , संस पवि इच्छनि सहो । एवं सेसाणवि विमासा ॥ इवाणि जिग्गामेतिदार । सो व छव्यिहोनियुको
। मामगाहा ॥२-६६।। नामनिम्गमो उवण दव खेत काल० माव०, नामस्थापने पूर्ववत् , वतिरिचो दब्बानिग्गमो, सो
सचिचाती वा सचिस्म निग्यमो उमंगो, सचिनाओ सचित्तस्स निग्ममो जहा मूलाओ कंदो कदाउ खयो एवं, अनाजहा इत्पीको ३१२७॥ मो, सपिचाजो अपिलस्स, जहा केसमंसुणहरोमादीणि, अचित्ताओ सपिचस्स जहा-कटाओ पावगस्स, अहवाकवाको पुषस,
पिता अपियस्स, जहा खीराओ दहि, दहितो णवणीतं, णवनीवाओ पत्र, अहवा उच्छुरसाउ गुलो । बझा दबाजे बन्ना निगमो, दम्याओ वा दवाण, चउमंगो, दवाओ दव्वस्स, जहा-रुवा पयुत्ता रूपओ चेव पच्चाओ जातो, दमाजो दबाब
वागण सवरण बहव स्वया लद्धा, दन्देहितो एगस्स दबस्स, जहा-पहहिं पञ्चेहिं एगो रूपनो लदो, बहह उर्ल बचे सलवात खेचनिगमो-आमि खेले मिग्पमते मिज्जति, जो वा आओ खेचाजो णिग्गजो एमादि, कालनिन्नयो-मिका
मी बावज्जति, जो वा जातो कालाओ निग्गतो, माषणिग्गमो-जो जाती मावाओ निगतो जेण या भाषेण निगलोरचारिक बना होस चेव दवखेगकालमावाण मग पुरिमं गणिज्जनिकटु तम्हा मगवतो चेष निगमो फ्रूपेतव्यो, सल्विक १२॥ जिग्गमे परमनाया