SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 794
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | तिथि वार ।। मोरा० ॥१॥ ते मुनि बाळक बंदीये रे ॥ ए अांकणी ॥ मात पितानी साथ ॥ मोरा ॥ दीख लेइ थया केवळी रे, बळी राणी नरनाथ ॥ मोरा० ॥ ते ॥ २ ॥ मावित्रे वीहावीया रे, ऋषि देखीता संत !! मोरा० । एक दिन P ऋषि तेणे दीठडा रे, तरुतळे अाहार करत ॥ मोराः ॥ ते ॥ ३ ॥ जातिस्मरण जाणीयं रे, पूर्व भव विरतंत ॥ मोरा० ॥ मात पिताने बूझवी रे, चारित्र तेह लहंत ॥ मोरा० ॥ ते ॥ ४ ॥ मात पिता दीक्षा लीये रे, तिम वळी राणी राय! | ॥ मोरा० ॥ ए पट जण थया केवळी रे, पहोंच्या शिवपुरमाय ॥ मोरा० ते ॥ ५ ॥ विजयदेव गुरु पाटबी रे, श्री | | विजयसिंह मुनिरा ।। मोरा । तेह तणों शिम उपदिशे रे. उदयविजप उबज्झाय ।। मोरा० ॥ ते० ॥ ६ ॥ इति ॥ श्रथ पंचदश भिक्षकाराध्ययन सज्झाय, १५. ___ रुक्मिणी रूप रंगिली नारी ॥ ए देशी ।।। तप करता मुनि राजीया लाला, न करे भोग नियाण ।। मुनि मार्ग सुधो धरे लाला, ते योल्या गुण खाणी ।। मुनी- | श्वर तो भिक्षु गुण शुद्ध ।। पंदरमा अध्ययनमा लाला, इम भाखे संबुद्ध ॥ मु०॥ १॥ मंत्र तंत्र नवि केलवे लाला, तस न राग न रोष ॥ शूरा परिसह जीतका लाला, चारित्रना नहीं दोष । पु० ॥ ते ॥ २॥ परिचय नहीं गृहस्थनो लाला, अरस विरस आहार ॥ पूजादिक वांछे नहीं लाला, साचा ते अणगार ।। मु.॥ ते ॥३॥ इणि परि, मुनिगुण सांभळी लाला, परखी किरिया नाण || साधु पंथ तुम्हे यादरो लाला, त्रण तत्त्वना जाण ॥ मु०॥ ते ॥ ४ ॥ विजयदेव गुरु पाटवी लाला, विजयसिंह गुरु लीह ॥ शिष्य उदय कहे एहवा लाला, मुनि प्रतपो निशि दीह ॥ मु० ॥ ते० ॥ ५॥
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy