SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 742
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहर्त्तनुं छे. तेमा उत्कृष्ट आयुष्य प्रत्येक शरीरवाळा पर्याप्त बादर वनस्पतिकायर्नु ज होय छे, भने अपर्याप्तनुं जपन्य ज | होय छे. सूक्ष्म अने साधारणतुं पर्याप्त अपर्याप्त बनेनुं अंतर्मुहूर्त्तनुं ज होय छे. एज प्रमाणे पूर्वे कहेला पृथ्वीकाय अने अएकायमां तथा आगळ कहेशे एवा तेजस्काय अने वायुकायमां पण पर्याप्त बादरने ज उत्कृष्ट आयुष्य होय एम जागवू. अणंतकालमुक्कोला, अंतोमुहले जहन्नगा। कागतिई गणमाग, तं कायं तु अमुचो ॥ १०३ ॥ अर्थ- पूर्ववत् विशेष ए के पनक (सूक्ष्म ) वनस्पतिकायनी उत्कृष्ट कारस्थिति अनंतकाळनी छे. ते सामान्य रीते सूक्ष्म वनस्पतिना जीशेने अथवा सूक्ष्म निगोदना जीवोने आश्रीने कही छे. विशेष विवक्षा करता तो प्रत्येक वनस्पति अने बादर निगोद ते साधारण वनस्पति-तेनी तो उत्कृष्ट कायस्थिति सीत्तेर कोटाकोटि सागरोयमनी छे, अने जेणे व्यवहार राशिनो कोइ वखत पण स्पर्श कर्यो छे अर्थात् व्यवहार राशिमा आवी मयेल छे एका सूक्ष्म निगोदनी कायस्थितिनुं प्रमाण असंख्यात काळर्नु छ. १०३. असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नगं । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अंतरं ॥ १०४॥ अर्थ—पूर्ववत. विशेष ए के कोइ जीव वनस्पतिथी नीकळी पृथ्व्यादिकने विषे भ्रमण करी पालो फरीथी वनस्पतिमा आत्रे तो उत्कृष्टधी असंख्यात काळे आवे. केमके वनस्पति सिवाय चीजा सर्वनी कायस्थिति असंख्यात काळनी ज .] छे, तेथी बनस्पतिकायनुं उत्कृष्ट प्रांतरं असंख्यात काळर्नु ज कडुं छे. १०४.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy