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| कहिं पैडिहया सिद्धा, केहिं सिद्धा पैइट्रिआ। कहि वोदि चइत्ता णं, कत्थ गण सिझई ॥५५॥
__ अर्थ-(सिद्धा ) सिद्धो ( कहिं ) क्या (पडिहया) स्खलना पाम्या सता ? (सिद्धा) सिद्धो ( कहिं ) क्यो | |* ( पइडिया ) सादि अनंत काळ सुधी रया सता ? ( कहिं ) क्या (बोंदि ) शरीरने ( चइत्ता णं) तजीने ? तथा (कत्थ) || क्या ( गंतूण ) जइने ( सिज्झई ) सिद्ध थाय छे ? ५५.
उपरना प्रश्रोनो उत्तर प्रापे के|| अलोए पडिहया सिद्धा, लोअग्गे अ पइट्रिआ। इहं बोदि चइत्ता णं, तस्थ गंतूण सिज्झई ॥५६॥ ॥1॥ अर्थ-(सिद्धा) सिद्धो ( अलोए ) अलोकने विषे (पडिहया) स्खलना पाम्या सता, ( लोश्रो श्र) लोकना * अग्रभागने विषे (पइट्ठिा ) रह्या सता ( इहं ) मा लोकने विषे ( बोंदि ) शरीरने ( चहत्ता णं) तजीने ( तत्थ ) ते
लोकना अग्रभागने विषे (गंतूण ) जइने (सिझई ) सिद्ध थाय छे. अलोकमां धर्मास्तिकाय विगेरे नहीं होवाथी * तेमां गति थइ शकती नथी. तेथी लोकने छेडे रहेला छे. नीचे के तिरछ गमन करवू ते कर्मने श्राधीन छ अने सिद्धने
कर्म होता नथी तेथी उंची ज गति होय छे. वळी जे समये अहीं शरीरनो त्याग करे छे ते ज समये लोकना अग्रभागे || | पहोंचे छे, इत्यादि समजवु. ५६.
हवे लोकाग्रनुं अने सिद्धनुं स्वरूप कहे छे.