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________________ * 1% अर्थ- - तथा जे (आयरिशपरिचाई ) आचार्यनो त्याग करनार होय, एटले " था गुरु तो तप ज करावे छे बने कांह सारो आहार आयो होय तो ते पण ग्लानादिक साधुओने अपावी दे छे. " या प्रमाणे विचारी आहारपरनी अति लोलुपताने लीधे नत्याग करे) पर पाखंडीओनी सेवा करे छे एटले निरंतर आहारमांज श्रासक्त रहेनारा बौद्धादिकनो सेवक थाय छे, तथा जे ( गाणंगणिए ) गायंगणिक-छ मासनी अंदर ज एक गच्छमांथी बीजा गच्छमां जाय थे, अने तेथी करीने ज ( दुग्भूए) दुर्भूत - दुराचारे करीने निंदाने पात्र थयो होय के ते ( पावसमत बुचई) पापश्रमण के एम कद्देवाय छे. १७. संयं गेहं परिचज्ज, पर गेहंसि वावरे । निमित्तण ये वैवहरइ, पावसमणे ति खई ॥ १८ ॥ अर्थ - तथा जे साधु ( सयं गेहं ) दीक्षा समये पोताना घरनो ( परिचज ) त्याग करीने पछी ( परगेहंसि ) श्राहारादिकना लोभधी बीजाना - गृहस्थीना घरने दिषे ( वावरे ) व्यापार करे- तेना घरना कामकाज करे, (य) तथा (निमिषेण ) शुभाशुभ निमित्तशास्त्र कहेबावडे ( बeers ) व्यवहार करे - द्रव्य उपार्जन करे, ते ( पावसमये ति बुचई) पापश्रमण के एम कद्देवाय ले, १८. पाइपिंड जेमेइ, नेच्छ्इ सामुदाणियं । गिहिनिसिज्जं चे बाँहेइ, पक्सिमणे त्ति, बुंच्चई ॥ १९ ॥ अर्थ - तथा जे (सपाइपिंडं ) बंधु विगेरे पोताना संबंध भो प्रीतिथी आपला पिंडने - आहारने (जेमेइ) जमे, तथा
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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