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________________ अर्थ--(संतई ) संततिने एटले परंपरान ( पप्प ) पाश्री (से) ते स्कंध भने परमाणुभो (अणाई ) अनादि अने (अपज्जवसिमावि अ) अपयेवसित एटले अनंत पण छे, एटले के प्रवाहनी अपेक्षाए स्कंध अने परमाणु रहित कदापि | जगत हतुं नहीं, छे नहीं अने थशे पण नहीं तथा (ठिई) नियमित क्षेत्रमा रहेवारूप स्थितिने ( पडुच्च ) आश्रीने (साई आ) सादि अने ( सपञ्जयसिआऽति अ) सपर्यवसित एटले सांत होय छे. कारण के स्कंधो अने परमाणुमो काळातरे नवा नवा क्षेत्रमा जाय छे तेथी तेनी स्थिति सादिसांत छ. १२. सादि सात छतां पण तेमनी स्थिति केटला काळ सुधीनी होय छे ? ते कहे छे.असंखकालमुधोसं, एंगं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रवीणं, ठिई ऐसा विआहिआ ॥१३॥ मर्थ-(अजीवाण य ) अजीच ( रुवीणं ) रूपी द्रव्योनी (एसा ) या ( उक्कोसं ) उत्कृष्टी ( असंखकालं ) भसंख्यात काळनी अने ( जहन ) जघन्य ( एगं समयं ) एक समयनी (ठिई ) स्थिति (विमहिमा ) कहेली छे. ते स्कंध भने परमाणुश्री जघन्य एक समय पछी अने उत्कृष्ट प्रसंख्यात काळ पछी एक क्षेत्रथी बीजा क्षेत्रमा अवश्य जाय छे. १३. | श्रा प्रमाणे काळने आश्री स्थिति कही. हवे तेनी अंदर रहेलुं प्रांतरूं कहे थे.अणंतकालमुक्कोस, एंगं समयं जहन्नयं । अँजीवाण य रूवीणं, अंतरेझं विआहि ॥ १४ ॥ अर्थ- (उकोसं ) उत्कृष्टथी ( भणंतकालं ) अनंत काळ भने ( जहन्नयं ) जघन्यथी (एगं समय) एक समय (ए)
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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