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________________ णिविणासणे ) घणा जीवोनो विनाश करनार ( जोममे ) अग्निना जेवू बीजु कोइ पण ( सत्ये) शस्त्र ( नत्थि ) नयी. (सम्हा) तेथी करीने ( जोई ) अग्निने (न दीवए) साधु सळगावे नहीं. १२ अही कोइने शंका थाय के-" रांधवा अने रंधाववामां जीववध थाय के, परंतु क्रयविक्रय करवामां जीववध नथी, माटे क्रयविक्रयवडे ज साधुए निर्वाह करवो योग्य छे." प्राची शंकावाळाने उत्तर प्रापे छेहिरणं जायरूवं च, मणसाऽवि ने पत्थए। समलेकंचणे भिक्खू विरैए कयविक्कए ।। १३ ॥ अर्थ- (समलेकंचणे ) कोइ पण ठेकाणे प्रतिबंध नहीं होवाथी समान छे लेष्टु-पथ्थर अने कांचन-सुवर्ण लेने L एवा ( भिक्खू ) साधु (कयविक्कए) क्रयविक्रयने विषे-क्रयविक्रयथी (विरए ) विरम्या छ--तेनाथी निवृत्त थया छ, तेथी (हिरमं ) सुवर्ण, (जायरूत्रं च) रू' अने चशब्दथी समग्र धन धान्यादिकने (मणसावि ) मनवडे पण (न पत्थए ) प्रार्थना न करे--इच्छे नहीं. १३. किणंतो कइओ होइ, विकिणंतो अ वाणिो । कयविक्कयम्मि बट्टतो, भिक्खू हवइ न तारिसो॥१४॥ अर्थ-कारण के साधु (किणतो ) खरीद करतो सतो ( कहो होइ ) अन्य मनुष्योनी जेम खरीद करनारो थाय छ, अने (विकिणतो अ) वेचतो सतो (वाणिो ) वणिक एटले वेपारी थाय छे, तेथी करीने ( कयविकयम्मि) क्रयविक| यने विषे ( यद्धृतो) प्रवेततो ( भिक्खू ) साधु ( नारिसो न हबइ ) जेवो शास्त्रमा कयो के तेवो धइ शकतो नथी. १४. KKA
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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