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अध्ययन ७ पार्नु १४०--रसगृद्धिको त्याग कर्यां विना निर्मथपणुं प्राप्त थतुं नथी, तेथी रसगृद्धिनो त्याग करवानुं स्वरूप सहेलाइथी समजाववा माटे सूत्रकार महाराजे उरभ्र (घेटो), कागदी, भाम्रफळ भने वेपार ए चार दृष्टांत आपी रसगृद्धिथी थता दोष भने तेना त्याग करवाया था गुजराबर बतायाधे, तेथी मा अध्ययननुं नाम औरभ्रीय राख्यु धे. तेमां कामभोगादिकनी गृद्धिवाळाने बाळक अने तेनो त्याग करनारने पंडित कही पंडित थवानो उपदेश प्राप्यो छे. | अध्ययन - पार्नु १५१–रसगृद्धिनो त्याग निर्लोभीधी थइ शके छे, तेथी निर्लोभतार्नु स्वरूप बसाववा माटे सूत्रकार सुधर्मास्वामी मूळसूत्रमा ज कपिल मुनिना चरित्र द्वारा उपदेश भापे छे. तेमां कपिलमुनिए पोते पांच सो चोरोने प्रसिबोध करवा माटे ध्रुवागीति छंद बोली सादी भाषामां ज धर्मर्नु रहस्य समजावी तेमने प्रतिबोधी दीशा पापी छे. ए विगैरे हकीकत रसवाळी पापी छे.
अध्ययन है पातुं १६०-झोभ रहित प्राणी इंद्रादिकथी पण पूजाय छे एबुं जगाववा माटे नमिराजर्षितुं चरित्र भापतां बीजा त्रण प्रत्येकबुद्धोनी कथा पण टीकाकार महाराजे कही छ भने त्यारपछी मूळ सूत्रमा संबंध मेळववा माटे नमि राजर्षिनु चरित्र प्राप्यु छ. दीदा लीधा पछीजें तेमनु चरित्र सुत्रमा जमावे छे. तेमां इंद्रे ग्राहाणना वेषे भावी तेमनी राग द्वेषनो त्याग, धर्मनी स्थिरता भने संयमपरनी दृढता विगैरे संबंधी परिक्षा करी, छेवट तेमने संयममां दृढ जाणी प्रत्यक्ष बद तेमनी स्तुति की इंद्र स्वर्गे गया छे विगेरे हकीकत पापी छे.
___ अध्ययन १० पार्नु १९८-नमि राजर्षिना चरित्रथी संयममां निश्चळता राखवायूँ कह्यु, से निश्चळता उपदेशथी ज प्राप्त थाइ || शके छे. तेथी श्री महावीरस्वामीए श्री गौतम गणधरने उद्देशी भा द्रमपन्न नाममुं अध्ययन कां छे. तेमां वृजनां नवां पत्रो जूनां पत्रोनी