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वामो ) उत्पत्ति ( न हु होह ) थती नथी. ५८. लेसाहि सव्वाहि, चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न तु कस्स वि उववाओ, परे भवे होइ जीक्स्स ॥५॥
अर्थ—पूर्ववत्. विशेष ए के ( चरमे समयम्मि ) त लेश्यानो अंधा समय पण उत्पत्ति थती नयी एम जाणवू. ५६. |
त्यारे शी रीते छ ? ते कहे छे. अंतमुहुतम्मि गए, अंतमुहुँत्तम्मि सेसए चेबै । लेसोहि परिणयाहि. जीवा गच्छति परेलोगं ॥६॥
अर्थ-(परिणयाहि ) परिणमेली ( लेसाहि) लेश्यावडे युक्त एवा ( जीवा ) जीवो (अंतमुहुत्तम्मि गए ) अंतर्मुहुर्त गये सते (चेव ) तथा ( अंतमुडुत्तम्मि ) अंतर्मुहूर्त (सेसए ) बाकी रहे सते ( परलोग ) परलोकमा ( गच्छति ) जाय छे. अर्थात तिर्यच अने मनुष्यने पोतार्नु भायुष्य अंतर्मुहूते बाकी रहे त्यारे परभवनी लेश्यानो परिणाम थाय छे एम सिद्ध थयु एटले तिथंच अने मनुष्य श्रावता भवनी लेश्यानो अंतर्मुहूर्त गये सते परलोकमा जाय छे श्रने देव तथा नारकी पोताना भवनी लेश्यानो अंतर्मुहूर्त पाकी रहे सते ते लेश्या सहित परलोकमां जाय छे. ६.. हवे आ अध्ययन समाप्त करवापूर्वक उपदेश आपे छे.
तम्हा एआण लेसाणं, अणुभावे विआणिआ। अप्पसस्था उ वजित्ता, पसस्था अहि द्विवासि त्ति बेमि ॥ ६१ ॥