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________________ 4लिओवमं जहन्नो, उक्कोसा सांगरा उ वुण्णहिआँ। पलिअमसंखिजेणं, होई भागेण तेऊए ॥५२॥ | अर्थ-(तऊए ) तेजोलेश्यानी ( जहमा ) जघन्य स्थिति ( पलिभोवमं ) एक पल्योपमनी छे, अने ( उक्कोसा) * उत्कृष्ट स्थिति ( पलियमसंखिजेणं ) पल्योपमना असंख्यातमा ( भागेण ) भागे करी ( अहिया) अधिक एवा ( दुस सागरा उ ) ने सागशेपमनी ( होई ) २. मारिणि पानिकने आधीने ज जाणवी. तेमा जघन्य स्थिति सौधर्ममा भने उत्कृष्ट स्थिति ईशान देवलोकमां छे. उपलक्षणथी भवनपति अने व्यंतरनी तेजोलेश्यानी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षेनी, व्यंतरनी उत्कृष्ट स्थिति पन्योपमनी अने भवनपतिनी उत्कृष्ट स्थिति कोहक अधिक सागरोपमनी जाणवी. ज्योतिषीनी जघन्य स्थिति पल्योपमनो आठमो भाग अने उत्कृष्ट स्थिति लाख वर्ष अधिक एक पल्योपमनी जाणवी. ५२. दसवाससहस्साई, तेऊइ टिई जहन्निआ होइ । दुण्णुदही पलिओवम-असंखभागं च उक्कोसा॥५३॥ । अर्थ-(दसराससहस्साई ) दश हजार वर्ष प्रमाण ( तेऊह ) तेजोलेश्यांनी (जहनिया ठिई ) जघन्य स्थिति होइ) * . ( च ) अने ( उक्कोसा ) उत्कृष्ट स्थिति ( दुण्णुदही) चे सागरोपम उपर (पलिप्रोवमअसंखभाग) पन्योपमनो असं-18 ख्यातमो भाग छ. अहीं प्रकरणने अनुसरीने तो जे कापोतलेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति होय ते ज एक समय अधिक तेजो लेश्यानी जघन्य स्थिति होची जोइए परंतु अही तेम कहेल नथी. तेनुं कारण ज्ञानीगम्य छ. ५२, आटली स्थिति कया | देखोने होय ते उपरनी गाथाना अर्थमां कहेल छ.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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