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________________ - -- एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वलिआ होई। तेण परं वाच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं ॥ १७ ॥ अर्थ-(एसा )आ ( तिरिअनराणं तिर्यंच मनुष्यनी ( लेसागा ठिई उ ) लेश्यानी स्थिति (यमिश्रा होई ) वर्णन | करेली छ, ( तेण परं ) त्यारपछी-हवं (देवाणं ) देवोनी ( लेसाण ठिई उ) लेश्यानी स्थितिने( वोच्छामि ) हुं | कहशि.४७. | दसवाससहरसाई, किण्हाए टिए जहमिआ होई। पलिअमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए ॥१८॥ * अर्थ-देवोमा ( दसवास सहस्साई ) दश हजार वर्ष प्रमाण (किण्हाए ) कृष्णलेश्यानी (ठिई जहणिया) जघन्य |1|| * स्थिति ( होई ) छे. तथा ( पलिश्रमसंखिजइमो) पल्योषमना असंख्यातमा भाग जेटली (किण्हार ) कृष्ण लेश्यानी * (उकोसा होइ ) उत्कृष्ट स्थिति छे. या स्थिति तेटला ज आयुष्यबाळा भवनपति अने व्यंतरोनी जाणवी, एज प्रमाणे नील अने कापोत लेश्यामां पण जाणवू. ४८. जो कि.पहाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिआ। जहरणं नीलाए, पलिअमसंखेज उक्कोसा ॥ ४९ ॥ अर्ध--(किव्हाइ ) कृष्ण लेश्यानी (जा) जे (उकोसा ) उत्कृष्ट ( ठिई ) स्थिति ( खलु) निश्च कही छे, रसाउ)
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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