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________________ YAM मा-क (परिणमे ) परिणमे छे-पामे छे. एटले तेवा प्रकारना परमाणुद्रव्यनी सहायथी स्फटिकनी जेवो भात्मा पख तेवा रूपने पामे छे-तेवी लेश्यावाळो थाय छे. कमु छ के-" कृष्णादिक द्रव्यनी सहायथी स्फटिकनी जेम आत्माना जे परिणाम ते प्र लेश्या कहेवाय छे." २१-२२. इस्सा अमरिस अतवो, अविज माया अहीरिया । गेही पओस य सढे, पमते रसलोलुए ॥२३॥ सायगवेसए अआरंभाविरयो खुद्दो साहस्सिओ नरो। एमजोगसमाउत्तो,नीललेसंतुपरिणमे ॥२४॥ ___ अर्थ---( इस्सा अमरिस अतवो ) इया एटले परना गुण सहन न करवा ते, अमर्ष एटले अत्यंत क्रोध अने अतप एटले तपस्या रहितपणु, ( अपिज) अविद्या एटले कुशास्वनी विद्या, (माया) माया, (महीरिया) दुराचार सेवामा अहीकता -निलेअपणुं, (गेही ) गृद्धि-विषयने विषे लंपटता, अने ( पोसे य ) प्रद्वेष. भहीं सर्वत्र अभेद उपचारथी हयांवाळो, अमवाळा इत्यादिक जाणवु. तथा ( सढे ) शठ-घिटो, ( पमत्ते) जातिमदादिकवडे मदोन्मत्त, ( रसलोलुए) रसने विषे लुब्ध, ( सायगवेसए अ) साता सुखनी गवेषणा करनार-इच्छनार, (प्रारंभाविरमओ) जीवोपमर्दादिक प्रारंमथी निवृति नहीं पामेलो, (खुद्दो) क्षुद्र भने (साहस्सिओ) साहसिक एवो ( नरो) पुरुष के स्त्री (एभजोगसमाउचो) भाषा ||T * न्यापारे करीने युक्त सतो ( नीललेसं तु परिणमे ) नीललेश्याने ज परिणमे छे-नीललेश्यावालो थाय छे. २३-२४. वंके वंकसमायारे, निअडिल्ले अणुज्जुए । पलिउंचग ओवहिए, मिच्छदिट्री अणारिप ॥ २५ ।। -reatoK.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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