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अर्थ - पोतानो अभिप्राय- पोतानी इच्छा सिद्ध करवा - पूर्ण करवा माटे श्रदत्तनुं पषा ग्रहण करे छे. ९४. तपाभिभू अस्स श्रदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे श्र । मायामु वढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ अ, पयोगकाले श्र दुही दुरंते । एवं श्रदचाणि समाययंतो, भावे अतितो दुहियो णिस्सो ॥ ९६ ॥ भावापुरतस्स रस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्यो भोगेऽवि किलेस दुक्खं, निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमेव भावम्मि गओ पोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराभो । पट्टचित्तो श्रचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ९८ ॥
अर्थ - ( मावम्मि पञ्चसं गमो ) भावने विषे प्रद्वेष पामेलो एटले अनिष्ट वस्तुनुं स्मरण याय त्यारे ते विचारे के
आ वस्तुनुं नाम पण मने न सांभरो. " इत्यादिक विचारी तेनापर द्वेष पामे . ९८.
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