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________________ - एज वातने दृढ करवा माटे स्त्रीओनुं दुरतिक्रमपणुं बतावे : मोक्खाभिकंखिस्स वि माणवस्स, संसारभीरस्स ठियस्त धैम्मे । नेयोरिसं दुत्तरमैरिथ लोए, जहिथिओ बालमणोहराओ ॥१७॥ अर्थ:-( मोक्खाभिकखिस्स वि) मोक्षनी अभिलाषावाला, (संसारभीरुस्स ) संसारथी मय पामनारा भने (धम्मे) धर्मने विषे (ठियस्स ) रहेला एवा ( माणषस्स ) मनुष्यने पण ( जहा )जे प्रकारे ( बालमणोहरामो) मूर्खजनने मनोहर लागे तेवी ( इत्थिो ) स्त्रीमो दुस्तर छ, । एयारिस ) एवा प्रकारचें ( लोए ) मा लोकमां बीजुं कोई (दुत्तरं ) दुस्तर (न अस्थि ) नथी. १७. स्त्रीनो संग नहीं करवायी थता गुणने कहे छ.-- एए अ संगे सेमइक्कमित्ता. सुहत्तरा चेव हवंति सेसी। जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥ १८ ॥ अर्थ-(एएम) या स्त्रीना विषयमाळा ( संगे ) संगने ( समकमिना ) ओळंगीने पछी ( सेसा ) बाकीना वीजा धनादिकना संगो ( सुहुचरा चेव ) सुखे तरी शकाय-योगी शकाय एवा ज ( हवंति ) थाय छे. ते उपर दृष्टांत मापे छे के-(जहा) जेम ( महासागरं ) मोटा समुद्रने ( उत्तरिता) उतरी गया पछी ( गंगासमाणा) गंगा जेबी (नई भवि)
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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