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छेवटे खपावे छे. त्यापछी अनुक्रमे संज्वलन क्रोध, मान, माया अपने लोभने खपावे छे. या दरेक प्रकृतिने खपाववानो काळ अंतर्मुहूर्त्तनो के तथा सर्व प्रकृतिभोने स्वपाववानो काळ पण अंतर्मुहूर्तनो ज छे. केमके अंतर्मुहूर्त्तना असंख्याता भेद छे. या प्रमाणे मोहनीय कर्मने खपावी पछी एक अंतर्मुहूर्त्तमां यथाख्यात चारित्रने पामे थे, पक्षी क्षीणमोह गुणस्थानकना ला समयर्माना पहेला समये निद्रा भने प्रचला ए बेने खपात्री छेना समये शुं खपावे छे ? ते कड़े थे. – ( पंचविहं ) पांच प्रकारनुं ( नाखावरणिअं ) ज्ञानावरणीय, (नवेविहं ) नव प्रकार ( दंसणावरथिअं) दर्शनावरणीय भने ( पंचवि ) पांच प्रकारनुं ( अंतराइअं ) अंतराय कर्म, ( एए तिथि वि कम्मंसे) आत्रणे सत्कर्मोने-तेनी १४ प्रकृविश्रोने (जुगवं खवे ) एकी वखते खपाये थे. ( तो पच्छा) त्यारी ( अणुत्तरं ) सर्वोत्तम, ( अनंतं ) विनाश नहीं होवाथी अनंत (कसिणं ) समग्र पदार्थोंने ग्रहण करurt start gee (डिपू ) समय स्वपर पर्यायोबडे परिपूर्ण, ( निरावरणं ) समग्र आवरण रहित, ( वितिमिरं ) अज्ञानरूपी अंधकार रहित, (बिसुद्ध ) सर्व दोष रहित, (लोगालोग पभावगं ) लोकालोकने प्रकाश करनार ( केवलवरनाणसं ) श्रेष्ठ एवा केवलज्ञान भने क्रेषदर्शन ने समुप्पाडेह ) उत्पन्न करे छे. त्यारपछी ( जाच ) ज्यां सुधी (सजोगी ) सयोगी मन, वचन अने कायाना व्यापारवाळो ( भवइ ) होय, ( तात्रय ) त्यां सुधी ( इरिश्रावहियं ) अॅर्यापथिक (कम्मं ) कर्मने ( बंधह ) बांधे छे. ते भैर्यापथिक कर्म के ? ते कहे छे . - ( सुहफरिस ) आत्मप्रदेशनी साधे सुखकारक छे स्पर्श जेनो एवं सातावेदनीयरूप (दुसमयडितिभं)
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१ अहीं नव विध कहे छे पण तेमांधी पांच निद्रा तो प्रथम खपावेली छे सेथी आ छेल्ले समये तो चार दर्शनावरण ज खपावे छे.