SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीससणिजरूचे अप्पडिलेहे जिइंदिप पिउललयात मिसभागार गाविरबह ॥ ४२ ॥ १४ ॥ अर्थ-( भंते ) हे भगवान ! (पडिरूवयाए णं) प्रतिरूपतावडे ( जीवे ) जीष (कि जबमा) उत्पन करे। उत्तर-(पडिरूवयाए णं) स्थविरकल्पीना जेवो वेष धारण करवो ते प्रतिरूप कहेवाय छेते प्रतिरूपताप पर्वाद अधिक उपकरणना त्यागवडे जीव (लापविअं) द्रव्यथी अन्य उपकरणाने लीधे भने भाक्षी मप्रतिपदामा सीप लाघवपणाने ( जणायइ ) उत्पन्न करे . ( लहुन्भूए अणं) अने लघुभूत एटले लघु पयेलो (बीके) वीप (अपाचे प्रमादरहित थाय छ, ते (पागडलिंगे) स्थविरकल्पिकादिकना जेवो जणातो होवाथी प्रगट लिंगबाजो शायदे (सत्यलिंगे ) जीवरक्षाना हेतुरूप रजोहरणादिक धारण करवाथी प्रशस्त लिंगवालो थाय छ, (विसुद्धसम्म) निमावडे समकितने शोधन करवाथी विशुद्ध समकितवाळो थाय छे, ( सत्तसमिइसम्मत्ते ) सत्य भने समितिमो बेनी समक्ष भने परिपूर्ण थइ छ एवो थाय छे, अने तेथी करीनेज (सबपाणभृनजीवसचेसु) सर्व प्राण. भूत, जीव भने अपने किस (बीससणिजरूचे ) पीडा उपजावनार नहीं होबाथी विश्वास करवा लायक थाय छ, (मप्पडिजेहे) मा निमावीमन पडिलेहणवाळो थाय छे, (जिइंदिए ) जितेंद्रिय थाय छे, तथा (विउलतवसमिइसमभागए मावि विजय होबाथी तप अने सवै विषयमा व्याप्त होवाथी विपुल एवी समितिभोष समितिपोर्नु समग्रपणुं का अने ही सर्व विषयनुं व्याप्तपणुं का, तेथी पुनरुक्त दोष समजयो । प्रतिरूपता छते पण बैयाक्च करवाथी ज इष्टनी सिद्धि थाय हे, तेथी वैयावबने रहे . ANA R .
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy