SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीससणिजरूवे अप्पडिलेहे जिइंदिए विउलतवसमिइसमन्नागए श्रावि भवइ ॥ ४२ ॥ ४४ ॥ ___अर्थ-( मंते ) हे भगवान ! (पडिरूपयाए शं) प्रतिरूपतावडे ( जीवे ) जीव (किं जणयइ ) शुं उत्पन करे ? | उत्तर-(पडिरूबयाए णं ) स्थविरकल्पीना जेवो वेष धारण करवो ते प्रतिरूप कहेवाय छे ते प्रतिरूपतावडे अर्थात् || | अधिक उपकरणना त्यागवडे जीव (लापविमं ) द्रव्यथी अन्य उपकरणने लीधे भने भावधी अप्रतिबद्धपणाने लीधे लाघवपणाने ( जणयइ ) उत्पन्न करे छे. ( लहुन्भूए अणं ) अने लघुभूत एटले लघु थयेतो ( जीवे ) जीव ( अप्पमचे) || प्रमादरहित थाय छे, ते (पागडलिंगे) स्थविरकल्पिकादिकना वो जगातो होबाथी प्रगट लिंगवाको थाय छे. ( पसस्थलिंगे ) जीवरक्षाना हेतुरूप रजोहरणादिक धारण करवाथी प्रशस्त लिंगवाळो थाय छे, (विसुद्धसम्मत्ते) क्रियावडे समकितने शोधन करवाथी विशुद्ध समकितवाको थाय छे, ( सत्तसमिइसम्मत्ते) सत्य अने समितिओ जेनी समाप्त श्रने परि| पूर्ण थइ छ एवो थाय छे, अने तेथी करीनेज (सव्वपाणभृअजीवसत्तेसु) सर्व प्राण. भूत, जीव अने सत्वने विषे al वीससणिजरूवे ) पीडा उपजावनार नहीं होवाथी विश्वास करवा लायक थाय छे, (अप्पडिलेहे) अन्प उपधि होवाथी अल्प | पडिलेहणवाळो थाय छे, ( जिईदिए ) जितेंद्रिय थाय छे, तथा (विउलतवसमिइसमन्त्रागए मावि ) विपुल भने घणा भेद 3 होवाधी विस्तीर्ण एवा तप अने सर्व विषयमा व्याप्त होवाथी विपुल एवी समितियोवडे युक्त एवो पण (भवइ) थाय छे. उपर समितिश्रोतुं समग्रपणुं कयु अने अही सर्व विषयतुं व्याप्तपणुं का, तेथी पुनरुक्त दोष समजवो नहीं. ४२-४४. प्रतिरूपता छते पण वैयावश्च करवाथी ज इष्टनी सिद्धि थाय छे, तेथी वैयावच्चने कहे के.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy