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कपाय रहित थाय छ, (अप्पकलहे) कलह रहित थाय छे, (अप्पतुमंतुमे) तुं हुं एचा शब्द रहित थाय छे, एटले के “ तुंज श्रा कार्य करतो हयो, तुं न करे छे" इत्यादिक शब्द बोलवानो बखत ज पावतो नी. तथा (संजमबहुले) घणा संयमवाळो अने ( संयरबहुले) घणा संवरवाळो थाय छे, (समाहिए श्रापि भवइ ) तेमज ज्ञानादिकनी समाधिवाळो पस्य थाय छे.२०-30 पायो जे जीव होय ते छेवट भक्तप्रत्याख्यान करे छे, तेथी सेने कहे छे.--
भत्तपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भत्तपञ्चक्खाणेणं अणेगाई भवसयाई निरंभइ ॥ ४० ॥ ४२ ॥
अर्थ (भंते ) हे भगवान! ( भत्तपञ्चक्खाणेणं ) आहारना प्रत्याख्यानवडे करीने ( जीवे ) जीव (किं जणयइ ) शुं उत्पन करे ? उत्तर--(भत्तपञ्चक्खाणणं ) श्राहारना प्रत्याख्यानवड़े करीने जीव ( अणेगाई ) अनेक ( भवसयाई ) सेंकडो भवोने (निरंभइ ) रुंधे छे अर्थात् दृढ शुभ अध्यवसायथी संसारने घणो अल्प करे छे. ४०-४२.
हवे सर्व प्रत्याख्यानाने विषे उत्तम एवा छेवटना सद्भाव प्रत्याख्यानने कहे छे.--- ___ सब्भावपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सब्भावपञ्चक्खाणेणं अनिहिं जणयइ, अनिअर्हि पडिवन्ने अ अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ । तंजहा-वेवणिज, आउअं, नाम,