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________________ सानिमद्धता तो विवित्त शाहगी भइ शाके से सेथी तेने कहे छे. विवित्तसयणासणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? विवित्तसयणासणयाए णं चरितगृत्तिं | जणयइ, चरित्तगुत्ते अणं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगंतरए मोक्खभावपडिवारले अविहं | कम्मगंठिं निजरेइ ॥ ३१ ॥ ३३ ॥ अर्थ-(भंते ) हे भगवान ! ( विविचसयणासणयाए पं) विविक्त शयनासनवडे ( जीवे ) जीव ( कि जणयह ) शु उत्पन्न करे ? उत्तर-(विवित्तसयणासणयाए णं ) विविक्त एटले स्त्री, पशु, पंडकादि रहित शयन, आसन अने उपलक्षणथी उपाश्रयवडे करीने जीव ( चरित्तगुति ) चारित्रनी गुप्तिने एटले रक्षाने (जणयइ) उत्पन्न करे छे. ( चरित्तगुत्ते अणं) तथा चारित्रनी रक्षा करनार (जीवे) जीव (विवित्ताहारे) विविक्त एटले विगइ आदिक शरीरनी पुष्टि करनार वस्तु रहित आहार छ जेनो एवो, तथा ( दढचरित्ते ) दृढ़ छे चारित्र जेनुं एको, तथा, ( एगंतरए) संयमने विषे एकांतपणेनिश्चयपणे रक्त-यासक्त एवो, तथा ( मोक्खमावपडियो ) मोक्षना मायने-अभिप्रायने पामेलो एटले 'मारे मोक्ष ज साधवानो छे' एवा अभिप्रायवालो सतो ( अविहं ) आठ प्रकारनी (कम्मगठिं) कर्मरूपी अंथिने (निरह) नि. जैरे छ-क्षपकश्रेणिवडे क्षय करे छे. ॥ ३१-३३ ॥ विविक्त शयनासनथी विनिवर्तना थाय छे तेथी तेने बताये छे.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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