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अर्थ (जयं) यतनावान (जई) यति (सरंभसमारंभे) हु ते ध्यान कर छु अथवा करीश के जैथी ते मरे के मरशे एवा ध्यानरूप संरंमने विषे तथा परनी पीड़ा करनार उमारनारिक संबंधी भयानरूप समारंभने विषे ( तहेव य) तथा (आरंभम्मि) परना प्राणने नाश करी शके तेवा अशुभ परिणामरूप प्रारंभने विषे ( पवचमाणं तु ) प्रवर्तता एया
(मणं) मनने (निअचिन ) निवर्तन करे, अने शुभ संकल्पने विषे मनने प्रवावे. २१. * इवे बीजी वचनगुप्तिने कहे छे.* सञ्चा तहेव मोसा य, सञ्चामोसा तहेव य। चउत्थी असञ्चमोसा उ, वयगुत्ती चउठिवहा ॥२२॥
अर्थ-(सचा) सत्या १, (तहेव) तथा ( मोसा य ) मृषा २, तथा ( सच्चामोसा ) सत्यामृषा ३, ( तहेव य) तथा (चउत्थी) चोथी (असचमोसा उ) असत्याऽमृषा ४, ए प्रमाणे (वयगुत्ती ) वचनगुप्ति (चउबिहा) चार प्रकारनी छे. तेनो अर्थ मनोगुप्तिनी जेवो जाणवो. २२. ___ संरेभसमारंभे, आरंभम्मि तहेव य । वयं पर्वतमाणं तु, नितिन्ज जयं जेई ॥ २३ ॥
अर्थ (जयं) यतनावान (जई ) यति ( सरंभसमारंभे ) संरंभने विषे एटले परनो विनाश करवामां समर्थ एवा मंत्रादिक गणवाना संकल्पने सूचनार शब्द बोलवा तेने विषे, तथा समारंभने पिपे एटले परने पीडा करनार मंत्रादिक | गणवा तेने विषे ( तहेव य) तथा (आरंभम्मि ) आरंभने विषे एटले परनो विनाश करवाना कारणरूप मंत्रादिकनो जाप