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* असंलोक ए वे शब्दो छ, तेना भोगानी रचना प्रथम बताने छ, पछी तेना उपलक्षणर्थी दशे विशेषणोना मांगा समजी लेवा.
अणावायमसंलोए, गवार होइ संद। भागलोए, आँवाए चे संलोए ॥१६॥
अर्थ-(अणावायं असलोए ) ज्या स्वपच एटले साधु के परपक्ष एटले गृहस्थीमोनी जा-पाव थती न होय ते अनापात स्थंडिल कहेवाय छे, तथा ज्या स्वपक्ष के परपक्ष दूरथी पण जोइ न शके ते असंलोक स्थंडिल कहेवाय छे. ए पहेलो भांगो थयो. १ : चेव) तथा (अणावाए ) अनापात अने ( संलोए ) संलोक (होइ) होय छे एटले ज्या जाव भाव नधी पण संलोक छे ते अनापात संलोक स्थंडित कहेवाय के, ए बीजो भांगो थयो. २ तथा (भावायं असंलोए) आपात अने असंलोक एटले ज्या जात्र आव होय पण संलोक न होय ते आपात असंलोक स्थंडित कहेवाय छे, ए बीजो मांगो. ३. ।।। ( चेव ) तथा ( श्रात्राए) आपात भने ( संलोए ) संलोक एटले ज्यां जा-पाव होथ अने संलोक पण होय ते आपात | संलोक स्थंडिल कहेयाय छे, ए चौथो भांगो थयो. ४. १६.
हवे ते दश विशेषणो जणाववा माटे केवा स्थंडिलमा उच्चारादिक चोसराव ? ते कहे छ.अण्णावायमसंलोए १, परस्सऽणुवघाइए २। समे३ अझुसिरे ४ आवि, अचिरकालकयम्मि अ५॥१७॥ विच्छिपणे ६ दूरमोगाढे ७,नासन्ने बिलवजिए ९।तसपाणबीअरहिए १०, उच्चाराईणि वोसिरे॥१८॥
अर्थ-(परस्स) बीजानो एटले स्वपक्ष के परपचनो (भयावार्य भसंलोए) आपात-जा-श्राव न होय भने संलोक