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नावा अ इति का वुत्ता ?, केसी गोअममब्बी । केसीमेवं बुवतं तु, गोअमो इणमब्ववी ॥७२॥
अर्थ पूर्ववत् जाणवो. अहीं केची नावा ? एत्रो प्रश्न कयों छे तेथी ते साथे तरनारनो अने तरवा लायक समुद्रनो पण प्रश्न को ज के एम जाणवू. ७२. | सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अलवो वुत्तो, "ज तरंति महसिणो ॥ ७३ ॥
अर्थ (सरीरं ) शरीर रूप (नाव ति) नावा के एम (आहु ) कहुं छे, कारण के पाश्रवद्वारनो रोध करी ज्ञान, दर्शन भने चारित्ररूप त्रण रत्ननी आराधना करवाथी शरीर ज संसारसागरने तारे छ. तथा ( जीवो) जीव (नाविभो) नाविक-तरनार ( बुचइ ) कहेवाय छे. केमके ते जीव ज भवसागरने तरनार छे. तथा ( संसारो) पा चार गतिरूप संसार (श्रावो ) समुद्र (बुत्तो) कह्यो छे. केमके तत्यथी ते संसार ज समुद्रनी जेम तरया लायक छ. (जं) के जे संसारसागरने (महेसियो) महर्षिओ ज ( तरंति ) तरे छे-तरी शके छे. ७३. साहु गोअम! पामा ते, छिन्नो मे संसमो इमो।अन्नो वि संसओमज्झ, तं मे कहसु गोत्रमा!॥७॥
अर्थ-पूर्ववत्. ७४. अंधयारे तमे घोरे, चिंट्रति पाणिणो बह । को कैरिस्सति उज्जो, सव्वलोअम्मि पाणिणं ? ॥७॥
अर्थ (अंधयारे ) प्राणीने अंध करनार अने (घोरे ) घोर एवा (तमे) अंधारामा ( बहू ) घणा (पाणियो)
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