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| हेतुरूप ( दीवं ) द्वीप ( 5 ) कोने ( ममसी) समे मानो छो १ ६५.
गौतमस्वामी जवाब आपे छे.---- अस्थि एंगो महादीवो, वोरिमन्ये महालओ। मदाउदगवेगस, गति तत्थ न विजई ॥६६॥
अर्थ--( धारिमज्झे ) जळनी मध्ये (महालभो ) मोटो (एगो ) एक ( महादीवो ) महाद्वीप ( अस्थि ) छे. (तत्थ) तेमा ( महाउदगवेगस्स) महाजळना वेगनी-प्रवाहनी ( गति ) गति (न विजई) प्रवर्तती नथी. ६६.
दीवे अ इइ के वुत्ते, केसी गोअममब्बवी । केसीमेवं बुवंतं तु, गोअमो इणमब्बवी ॥६७॥ __अर्थ-(दीवे ) द्वीप कोने कहीए ? चाकीनो अर्थ पूर्ववत्. द्वीपना उपलक्षणथी ते जळमा रहेलो होवाथी जळना | प्रवाहनो प्रश्न पण बाणी लेवो. ६७,
जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं ॥ ६८॥
अर्थ--( जरामरणवेगेणं ) जरा अने मरणरूपी जळना वेगवडे ( बुज्झमाणाण ) वहन कराता-तणाता (पाणिणं) प्राणीओने ( धम्मो ) धर्म ज ( पइट्ठा य ) स्थिर रहेवाना हेतुरूप, ( गई गति-आधाररूप अने ( उत्तम ) उत्तम (सरखं) शरणरूप (दीवो) द्वीप छे. कारण के ते धर्म ज संसाररूपी समुद्रमा द्वीपरूपे रहेलो छे. ते मुक्तिनुं कारण होवाथी जरा अने मरणरूप जळनो वेग तेने पहोंची शकतो नथी. ६८,