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________________ | हर्षथी मांगलिक बचनो बोलता हता, अने गवयाओ कर्णने अमृत समान संगीत गाता हता. अप्सराबोनी जेची वेश्याओ राजानी वागळ पगले पगले भगवानना गुणोना गायन सहित नृत्य करती चालती हती. मा रीते मोटी ऋद्धिवडे भव्यजनोना मनने आनंद आपतो, सद्भावरूपी अमृतवडे पुण्यरूपी वृक्षोने सींचतो, कल्पका वृतनी जेम याचकोने अत्यंत दान यापतो अने अहंकारथी पोताने उत्कृष्ट संपत्तिनुं स्थान मानतो ते दशार्णभद्र राजा सर्व परिवार, पुरजनो अने ते महत्तरपुत्र सहित समवसरणनी समीपे जह पहोंच्यो. त्यां हस्तीपरथी उतरी छत्र, चामरादिक राजचिन्होनो त्याग करी सर्व परिवार सहित जिनेश्वरने त्रण प्रदक्षिणा करी विधिपूर्वक भगवानने नम्यो. पछी हर्षथी गद्गद् वागीण, मोटा वर्शवाळा स्लोबोबड़े जिनाधीनी स्तुति करीने ते जनाधीश ( राजा ) योग्यस्थाने वेठो. आ वखते अवधिज्ञानवडे दशार्णभद्रनो तेवो गर्वमय अभिप्राय जाणी शक इंद्रे विचार कर्यो के-"अहो ! दशाणेभद्रनी प्रभुविषे अनुपम भक्ति ले, परंतु आ बाबतमा गर्व करवो तेने योग्य नधी. केमके त्रणे भुवनवडे पण भगवाननी | संपूर्ण भाक्त थइ शके तेम नथी. " आ प्रमाणे विचार करी संपत्तिना अधिकपणाथी उत्पन्न थयेला तेना मानने हरवा माटे तथा तेने बोध करवा माटे शक इंद्रे औरावण नामना देवने आज्ञा करी, तेधी तेणे उज्यलपणाथी अने उंचाइथी कैलास पर्वतनो पण पराभव करे एवा चोसठ हजार हाथीप्रो विकुा. एक एक हाथीने पांच सो ने चार बार मुख विकुळ, दरेक मुखे भाठ पाठ दांत विकुा , दरेक दांत आठ आठ मनोहर वावो विकुर्ची, दरेक वावमा आठ आठ कमळो विकुया, दरेक कमळने एक एक लाख पत्रो विकृया, दरेक पत्रमा बत्रीशबद्ध नाटक विकुन्यु. तेम ज ते दरेक कमळनी
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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