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| सत्य प्रतिज्ञाबाळा राजाए ते नमपिने राज्यपर स्थापन कर्यो, भने पोते शुद्ध हृदयवाला था मंतःपुरमा जइने रखा.
___ त्यारपछी बगलानी जेवा मायावी ते नमुचिए पुरनी बहार जइ यज्ञपाटकमां कपटी यानी दीक्षा लीधी. तेनो राज्याभाभिषेक थयेलो होवाथी ते निमित्ते समग्र प्रजा तेनी पासे आयी. तथा जैन मुनियो बिना बीजा सर्वे लिंगीओ (धर्मगुरुत्रो)
तेनी पामे वर्धापन करवाहमा ल्या. खते " सर्व लिंगीओ मारी पासे भाव्या छे, परंतु जैन साधुभो अान्या | नथी." एम इाथी बोलता नमुचिए वे जैन साधुमोनो मोटो अपराध गण्यो. पछी सुव्रताचार्यने बोलावी ते अनार्य | | नमचिए कप के---"जे वसते जे नवो राजा थाय ते वखते सर्व लिंगीओए तेनी पासे जर्बु जोइए, कारणके राजा तपावन
नोर्नु पण रक्षण करे छे, तेथी तपस्वीओ राजा पासे जाय छे. श्रावी दनियानी स्थिति छे.छतां तमे वो गर्विष्ट छो, लोकमर्यादाथी रहित छो अने मारी निंदा करनारा छो, तेथी मारी पासे श्राव्या नथी, माटे तमारे मारा राज्यमा रहेवू नहीं. चीजे ठेकाणे जाओ. जो कदाच तमारामांथी कोडपण मारा राज्यनी हदमा रहेशे. तो ते शठनो हुँ अवश्य वध कराश. तमारी जचा लोकविरोधी अने राजविरोधीने कोण वसवा दे!" या प्रमाणे तेनु बचन सांभळी सनि बोल्या क-"श्रमारो आचार नहीं होवाथी अमे तमारी पासे श्राव्या नथी, परंतु तमारा अभिषेक बाबत अमे काइपण निंदा करता नथी." ते सांभळी दुष्ट बुद्धिवाळो नमुचि क्रोधथी चोन्यो के–“ घणु कहेवाथी सयु. भाजथी सात दिवस पछी जो तमन काइन | हुँ प्रही जोइश, तो अवश्य चोरनी जेम मारो घात करीश."
‘ा प्रमाणे तेनी उन माना सांभळी प्राचार्य महाराज पोताने उपाश्रये पाव्या. पछी सर्व मनिभाने एकत्र करी सर्व