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________________ 4 = प्रात्मकार्य साध्यु. त्यारपछी ते शांतिनाथ नामना राजा नीतिथी राज्यर्नु पालन करता सता स्त्रीयो साथे उत्तम भोग भोग| ववा लाग्या. ' भोगफळ आपनारं निकाचित कर्म एज रीते चीय थाय छे.' __एकदा दृढरथनो जीव सर्वार्थसिद्ध विमानथी चवीने यशोमती राणीनी कुक्षिमा अवतो. ते घखते यशोमतीए स्वममा | चक्र जोयु. ते स्वानुं फळ पूछवाधी जगत्पतिए कह्यु के–“हे देवी! तने उत्तम पुत्र थशे." त्यारपछी समय पूर्ण थये राणीए शुभ लक्षणयाळा पुत्रने जन्म प्राप्यो. स्वामीए स्वप्नने अनुसारे तेनुं चक्रायुध नाम पाडयु. ते कुमार अनुक्रमे वृद्धि पामी युवावस्थाने थाम्यो, त्यारे स्वयंवर तरिके प्रायेली घणी राजपुत्रीओने ते परण्यो. श्री शांतिनाथ राजाने राज्य करता पचीश हजार वर्ष व्यतीत थया त्यारे एकदा श्रायुधशाळामां चक्ररत्न प्रगट थयु. ते वखते चक्रनी पूजा करी पछी ते चक्रने मार्गे अनुसरी प्रभुए लीला मात्रमा ज छखंड भरत क्षेत्र साधी लीधुं. बत्रीश हजार राजामोथी जेमना चरणकमळ सेवाता हता एवा श्रीशांतिनाथ चक्री शत्रुप्रोनी शांति करी हस्तिनापुरमा आया. पछी देवोए अने सर्व राजाश्रोए मळीने चार वर्ष सुधी तेमने चक्रवर्तीपणानो अभिषेक कर्यो. पछी अंतःपुरनी स्वीओनी जेम चक्रवर्तीनी लक्ष्मीने भोगवता प्रभुए पचीस हजार वर्ष व्यतीत कर्या. ते बखते लोकांतिक देवोए भावी प्रभुने कर्यु के-“हे स्वामी! धर्मतीर्थ प्रवर्तावो." स्यारपछी प्रभुए वार्षिक दान दीधं अने राज्यने विषे चक्रायुद्धने स्थापन करी सर्वार्थ नामनी शिचीकामा येसी सुरेंद्रो, असुरेंद्रो अने नरेंद्रोए जेमनो दीक्षा महोत्सव को छे एवा प्रभुए सहस्त्राप्रवन नामना वनमा आवी शिविकाथी उतरी ईशान दिशाए रही वखाभूषणनो त्याग करी हजार राजाओ साथे दीक्षा अंगीकार
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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