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* पासे एक चक्ररत्न सिवाय बीजां सर्व रत्नो प्रगट ( उत्पन्न ) थयां. पछी महारथी एका ते चळदेव अने वासुदेवे क्रोधी । | शस्त्रांनी वृष्टि करनारा ते दमितारिना सुभटोनो शीघ्र पराजय को. त्यारे सैन्यबडे आकाशने ढांकतो अने नेजस्वी शस्त्रो| चडे वीजीना उद्योतने करतो दमितारि राजा पोते युद्ध करवा चाल्यो. तेने आयतो जोइ कनकधी अत्यंत भय पामी. |||
तेने धीरज आपी बळदेव सहित बासुदेव तेनी साथे युद्ध करवा पाछा चळ्या. पछी चासुदेवे तेना सैन्यथी यमा सैन्य | || विद्यावडे विकुर्वीने ते दमितारिना सुभटो साथे युद्ध शरु कयु. अनुक्रमे दमितारिना सैन्ये अनंतवीर्यना सैन्यनो पराभव | * को. ते जोह वासदये गुजरूपी नाटकनी नांदीनो जाले नाद होय एवो पंचजन्य शंखनो नाद को. ते नाद सांभळतां ज|
दमितारिना सर्व सुभटो भय पामी नाशी गया. त्यारे दमितारिए पोते अनंतवीर्य साथे चिरकाळ पुद्ध कर्यु. छेवट अनंत- | | वीर्यने दुर्जय जाणी दमितारिए चक्ररत्ननु स्मरण कयुं, एटज्ञे जाणे बीजो सूर्य होय एवं तेजस्वी ते चक्र दमितारिना | || हाथमा प्राप्त थयु. तरत ज तेणे ते चक्र अनंतवीर्य उपर मुकधु. तेथी अनंतवीर्य छातीमा ते चक्रना तुंयनो आघात थवाथी | मूर्छा खाइ पृथ्वीपर पड्यो, परंतु एक क्षणवारमा ज पाछो स्वस्थ थइ ते ज चक्र हाथमा लइ तेणे दमितारि उपर मृत्यु, तेनाथी ते प्रतिवासुदेव प्राण रहित थइ गयो. ते वखते आकाशमा रहेला देवोए वासुदेवना मस्तक उपर पुष्पवृष्टि करीने | कधु के-" हे जनो ! श्रा अनंतचीय वासुदेव के अने तेना मोटा भाइ वळदेव थे, तेमनी तमे सर्वे सेवा करो." ते सांभळी सर्व विद्याधरो वासुदेवने नम्या.
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