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श्री उपासकदशांग सूत्र-३
तए णं तस्स खुलणीपियरस समणोबासयस्त पुश्वरत्तावरत्तकाल समयंसि पगे देवे अतियं पाउन्मूए। तए णं से देखें एग पीलुप्पल जाव आस गहाय चुलणी. पियं समणोवास एवं पयासी-"हं भो चुलणीपिया ! समणोवासया जहा कामदेवो जाव ण भज्जसि तो ते भई अन्न जेपुत्तं साओ गिहाओ गाणेमि णीणेमित्ता तव अग्गओ धामि, घाएप्ता तओ मंसमोल्ले करेमि, करता आदाण. भरियसि कहासि अपहेमि, अबहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिपण य आयंचामि, अहा गं तुम अहवस अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।" तए णं से चुलणीपिया समणोषासए तेणं देवेणं एवं खुत्ते समाणे अभीए जाब विहरह।
अर्थ- अर्द्धरात्रि के समय उसके समीप (कामदेव की भांति) एक देव आया, तथा नीलकमल के समान खडग धारण कर बोला यावत् "यदि तू व्रत-मंग नहीं करेगा, तो में आज तेरे सबसे बड़े पुत्र को तेरे घर से ला कर तेरे समक्ष माहंगा, तपा उसके मांस के तीन खण्ड कर के उबलते हुए तेल के कड़ाह में तलंगा और उस मांस एवं रक्त का सेरे शारीर पर सिंचन करूंगा, जिससे तू आतंध्यान के वश हो, अकाल मृत्यु को प्राप्त करेगा।" देव के ऐसे वचन सुन कर भी चुलनीपिता श्रमणोपासक परे महीं और धर्म में स्थिरचित्त रहे।
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोपासयं अभीयं जाव पासह, पासित्ता पोग्यपि तच्चपि शुलापियं समणोवासयं एवं घयासी-हं भो धुलणीपिया ममणोवासया! तं देव भणइ, सो जाव विहरह । तए णं से देवे चुलणीपिर समणोघासयं अभीयं जाव पासित्ता आसुरत्ते रुठे कृथिए चडिक्किा मिसिमिसीयमाणे चुलीपियरस समणोवासयस्स जेहं पुत्तं गिहाओ जीणेह, णीणेत्ता अग्गओ घाइ धाएत्ता तआ मंससोल्लग करेइ करेत्ता आवाणभरियसि कहायिसि अहहह, अाहेत्ता चुलणीपियस्स समणोघासयस्स गाय सेण या सोणियेण य आयचाइ, तए णं से घुलणीपिया समणोवासए सं उज्जलं जाष अहियासेह।
मयं-- जब वेव में चुलनीपिता अमणोपासक को निर्भय देखा, तो रो-तीन बार