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श्री पासकदशांग सूत्र-२
समान गम्भीर गर्जना करता हुआ मन एवं पवन के समान शीघ्र गति युक्त हाय) का रूप बना कर कामवेष धमणोपासक के समफा आया और कामदेव भमणोपासक से कहने लगा;
"हं भो कामदेचा ! सरगोचालया गझेब नप जे सिमो ते अज्ज अहं सोण्डाए गिहामि, गिहामित्ता गेसहसालाओ णीणेमि, गीणेमित्ता उपद हामं उबिहामि, उब्धिहामित्ता तिक्खेहिं दंतमूसलाई परिच्छामि, पदिच्छामित्ता अहे धरणितलसि तिकबुत्तो परसु लोलेमि जहाणं तुम अदुहवसट्टे अकाले घेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।" तर f से कामदेवे समणोवासए सेणं देवेणं हथिरूयेणं एवं वुत्ते समाणे अमीए जाव विहरइ । तए णं से देवे हत्यि रूवे कामदयं ममणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चपि तच्चपि कामदेवं समणोवास एवं वपासी है भो कामक्षेषा ! महेव जाष सोऽपि विहाह । मए णं से देवे इन्धिरूवे कामदेवं समणोपासयं अभीय जाब विहरमाणं पामह, पासित्ता आसुरुत्ते रूठे कुथिए चंडिविका मिसिमिसायमाणे कामदेवं समणोवामयं मोण्डाए गिणहरु, गिण्डित्ता उड्ढे बेहासं उबिहह उविहित्ता तिक्वहिं दसम्मलेहि परिच्छा. पदिकित्ता अहे धरणितलंसि लिक्खुत्तो पाएसु लोलेर । नए णं से कामढवे समणो. वामए नं उज्जलं जाव अहिंयाले ॥सू. २१॥
अर्थ-हे कामदेव ! यदि तू श्रावक-व्रतों का भंग नहीं करेगा, तो मैं तुझे मुंह से पकड़ कर, पौषधशाला से बाहर ले जाऊंगा और आकाश में ऊंचा फेंक दूंगा तया नीचे गिरते समय मेरे तीषण धांतों पर मेल कर नीचे भूमि पर गिरा दूंगा, तपा तीन बार पांवों तले कुचलंगा । जिससे तू आर्तध्यान करता हुआ अकाल में मर जायेगा। ये वचन सुन कर भी कामदेव धमणोपासक को तनिक भी भय नहीं हुआ, और पूर्ववत् धर्मध्यान करते रहे। उपरोक्त वचन दो-तीन बार कहे, तब मी कामदेव को धर्मध्यान ध्याते अविचल देखा, तो देव ने कुपित हो कर अपने हायी रूप से कामदेव को सूंह द्वारा ग्रहण कर पौषधशाला से बाहर लाया और आकाश में ऊंचा उछाला, और गिरते हए अपने तीक्ष्ण दांतों पर मेला, तथा भूमि पर पटक कर तीन बार पांवों तले कुचला । इससे कामवेवजी को पूर्ववत असहा