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महाशतक तुम प्रायश्मि को
तए णं से महासयए समणोवास पढाई सील जाच भावेता बीसं बासाई समणोधास यपरियार्थ पाणिता, एक्कारस उषासगपरिमाओ सम्मं कारणं फामित्ता मासियाए मंलेहणाए अप्पाणं भूमित्ता, सहिँ भत्ताई अणसणाए छेदिता, आलोय पक्कं समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडिसए विमाणे देवत्ताए उबवण्णं । चत्तारि पलिओ माई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिर णिक्खेवो ।
|| सत्तमस्स अंगस्स उवासगवसाणं अट्टमं अज्झयणं ममतं ॥
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अर्थ — उन महाशतक श्रमणोपासक ने आवक के बहुत से व्रत एवं तपश्चर्या से आत्मा को मावित किया और बोस वर्ष की भाषक पर्याय का तथा ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का यथारीति सम्यक् पालन-स्पर्शन किया। मासिको संलेखना से शरीर और कषायों को जीज करके मृत्यु के अवसर पर आलोचना प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्वक काल कर के सौधर्म taste के अणावतंसक विमान में उत्पन्न हुए, जहाँ चार पत्योपम तक देव-स्थिति का उपयोग कर वे महाविवेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त होंगे। श्री सुधर्मास्वामी फरमाते हैं कि हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से भी उपासकदशांग के अष्टम अध्ययन के जो भाव मने सुने, ये हो तुम्हें कहे हैं ।
विवेचन - इस प्रध्ययन में विचारणा के लिए अनेक दृष्टिकोण उपलब्ध है - वेदमोहनीय की विचित्रता आहार का वेदोदय के साथ सम्बन्ध, माहार का मित्तवृति के साथ सम्बन्ध, ज्ञान होने पर भी पायोदय से अविवेकपूर्ण भाषण, माथि ।
|| अष्टम अध्ययन सम्पूर्ण ||