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महाशतक तुम प्रायश्चित लो
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पाणपडिया किस्स परो संतहिं जाव बागरितप । तुमे य णं देषाणुपिया ! रेवई गाहावणी संतहिं ४ अणिद्वेहिं ३ वागरणेहिं बागरिया । तं गं तुमं एयरस ठाणस्स आलोएहि जब जहारिहं च पायच्छित्तं परिवज्जाहि ।"
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अर्थ — रेवती के वचन दो-तीन बार सुन कर महाशतक श्रमणोपासक कुपित हुआ। अवधिज्ञान में उपयोग लगा कर आगामी भव देखा तथा प्रथम नरक में उत्पन्न होवेगी यावत् वचन कहे। हे गौतम । अपश्चिममारणांतिको संलेखना स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा और आहार की अमिलाया नहीं रखने वाले पाक को सत्य, सभ्य, यथार्थ एवं सद्भूत होते हुए भी अप्रिय, अकान्त, अनिष्ट लगने वाले, मन को नहीं माने वाले और मन को बुरे लगने वाले वचन कहना नहीं कल्पता है । अतः हे देवानुप्रिय गौतम ! तुम महाशतक के समीप पौषधवाला में जाओ और उससे कहो कि "संलेखना में धावक को ऐसे व कहना नहीं कल्पता है । सुमने रेवतो गाथापत्नी को सत्य बात भी अप्रिय अनिष्ट आदि लगने वाली कही, अतः उस दोष-स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण कर यथायोग्य प्रायश्वित स्वीकार करो |
नए णं से भगवं गांयमे समणस्स भगवओ महावीरस्म "तहत्ति " एपमट्ठ विणणं पाडणे, पडिणित्ता तओ पडिणिक्खमह, पडिणिक्खमित्ता रायगि णय मज्ज्येणं अणुष्पविम, अणुप्पविसित्ता जेणेव महासयगरस समणोबासपरम गिहे जेणेव महासयण समणोवासए तेणेव उवागच्छ ।
अर्थ – भगवान् का आवेश सुन कर गौतम स्वामी ने विनयपूर्वक स्वीकार किया और अपने स्थान से निकले तथा राजगृह नगर में प्रविष्ट होकर महाशतक श्रमणोपासक के घर पधारे ।
महाशतक तुम प्रायश्चित्त लो
लए पां से महामयए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासड, पासिता इट्ठ जाव हिय भगवं गोयमं बंदर णमंसह । तए गं से भगवं गोयमे महासययं समणो