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________________ | कबहुं नाहीं छूट। रीसे अनादि मिथ्यात्वधारी जीव अनन्त हैं। इनमें कोई जोव मोक्ष जावे योग्य है, ते कारण | पाय मोक्ष होय, सो रातौ संसारी राशि कही। अरु निकटभव्य जीव जो सासादन दूसरे गुणस्थान ते लगाय अयोगी गुणस्थान पर्यंत है, सो यह मोक्षजीव हैं । र सर्व मोत जावे योग्य हैं। इनमें यथायोग्य कर्मन का सम्बन्ध है। कोई कर्म बन्ध करने योग्य हैं। इन जोवन पै द्रव्य-कर्म का बन्ध पाइये है। सर्व अष्टकर्म की प्रकृति एकसौ अड़तालीस हैं। तिनमें बंध थोग्य एकसौ बीस हैं। बाकी बठाईस इनकी इनही में गमित करी हैं। वचितष्क की बोस थीं सो च्यारि ही मूल राखी, उत्तर भेद तिनके सोलह सो तिन च्यारि में ही गर्मित किये और पंच बंधन, पंच संघात ए दश प्रकृति पंच शरीरन में मिला दई। दर्शनमोह के तीन भेद थे सो दोय भेद एक मिथ्यात में मिलाए। ऐसी वर्ण की सोलह शरीरादिक की दश दर्शनमोह की दोय ! रा सर्व अठाईस एकसौ बीस मैं गर्भित करी। राकसौ बीस राखों सो बंध योग्य प्रकृति नाना जीवापेक्षा एकसौ बोस। तिनको अब गुणस्थानत्व प्रति कहिये हैं। सो मिथ्यात्व गुणस्थान में आहारक द्विक की दोय एक और तीर्थकर ये तीन प्रकृति नहीं बधं हैं। ऊपरिले गुणस्मा-मैं योग्य भास मिलेंगी। मियाल सकौ पारा प्रकृति नाना जीवापेक्षा बंध योग्य हैं और मिथ्यात्व छुटि जब इस जीवकू ऊपरिले गुणस्थान की प्राप्ति होय है । तिनके बंध कहिये है । सो सासादन में ये सोलह प्रकृति का बंध नाहीं। मिथ्यात्व ही में रहै है। तिनके नाम मिथ्यात्व। “नपुंसक वेद" के "नरककात्रिक" । ३. स्फाटिक संहनन, हुंडक संस्थान, जाति च्यारि, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्ति, बाताप, स्थावर–रा सोलह का बन्ध दुसरे सासादन गुणस्थान में नाहीं। तातें सासादन में एकसौ एक का बन्ध है। तीसरे गुणस्थान में दूसरे सासादन से पच्चीस की व्युच्छित्ति करी तिनके नाम । अनन्तानुबन्धी च्यारि, मध्य के संहनन च्यारि, संस्थान मध्य के च्यारि, निद्रामोटी तीन, तिर्यचत्रिककी तीन, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय स्त्रीवेद, नीचगोत्र उद्योतनाम, अशुम चाल-ए पच्चीस तजि तीसरे गुणस्थान छिहन्तरि लेय आया यहां देव और मनुष्य आयु ये दो का बन्ध भी नाहों चौहत्तरि का बन्ध तोजे गुणस्थान है। यहां व्युच्छित्ति नाही राही चौहत्तरि लेष चौथे गुणस्थान आय तहाँ-तहाँ देवायु मनुष्यायु तीर्थकर, र तीन यहाँ मिली तब सर्व मिल सतेतरि का बन्ध चौथे गुसस्थान में है। तहाँ दश को न्युच्छित्ति तिनके नाम 1 अप्रत्याख्यान को च्यारि मनुष्यात्रिक प्रौदारिक ७
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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