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________________ पौ प्टि ६७ तिस भगवान के वचन हैं सो सर्व जीवक अमृत समान सुखदायी हैं। सो भी अमृत तं तौ तन का आताप ही मिटे हैं। भगवान के वचन-अमृत तैं जन्म-मरण आताप मिटै है तातें भगवान का वचन परघात रूप होता नाहीं और जो यमकं तु जीव माने है। सो राम को जीतस्तु नाहीं । जाकौं तूं यम कहै सो काल द्रव्य जड़ है, जीव नाहीं । इस संसार विषै षट् द्रव्य हैं तिनमें एक जीव और पाँच अजीव हैं । तिन अजीव द्रव्यन में भी एक पुद्गल द्रव्य तौ जड़ मूर्तिक है बाकी चार अमूर्तिक हैं । तिन अमूर्तिन में सर्व भिन्न-भिन्न गुण पर्याय सत्ता धरं हैं। तिनमें एक काल द्रव्य है ताका गुण तौ वर्तमान है। ताकी व्यवहार पर्याय समय, घटी, पहर, दिन, पक्ष, मास, वर्ष, पूर्व, पल्य, सागर है सो यह समय-समय करि हो, जीव की जैसी जैसी पल्य सागरन आदि की आयु है सो बीततो जाय है। जा जीव ने पूरव भव में जैतै समयन का आयु बान्ध्या है। तैसा स्वासोच्द्रवास भोगि पर्याय पूरा करि परगति को जाय है। ताका नाम मोरे या कहें हैं कि काल ले गया। सो यम कोई चेतना नहीं था । ये ही काल द्रव्य की व्यवहार पर्याय समय-समय करि प्रवर्तती पलक, घरी, दिन, पक्ष, बरष तैं जाय है। सो जाका जितना आयु होय तैते समय ही रहें, पोछे तन तजैं। बन्धी आयु के समय भोग लिये पोछे एक समय नहीं रहे है। देव, इन्द्र चक्री आदि ये भी तिथि पूरण भये पीछे एक घरी भी नहीं रहें। जा समैं थित पूरी हो, आत्मा काय त है । ताक भीले प्राणी कहें हैं। जो थाकौ यम ले गया। सो काल तौ जीव नाहीं, जो जीवकों ले जाय यह काल द्रव्य तौ जड़ है अरु जड़त्व ही ताकी पर्याय हैं। सो व्यवहार पर्याय तो अपने स्वभावमयी समयसमय प्रवर्ततो जाय सो तौ अनन्त काल अनन्त परिवर्तनमयो होते चले जाये हैं । तिनमें इन संसारी जीवन की थिति के भी समय पूरण होते चले जांय हैं। सो थिति पूरण का नाम मरण कहिये है। सो यह इस जीव ही का उपारणा (किया) है। सो शुभ परिणामन तैं तौ देवन को तथा उत्कृष्ट भोग भूमि की आयु कर्म पार्टी है। पापकर्मकादि का उत्कृष्ट आयु-कर्म पावे हैं। भली जायगा ऊँच कुल में उपजि हीन आयु पाय मरण करै सो पर - जीवन को हिंसा का फल जानना । जैसी जैसी इस जीव की परणति शुभाशुभ भई, तैती हो थिति पाईं. अरु वह पूरण भये पर्याय तपता भया। तातें है भाई ! तू ऐसा भ्रम तजि, कि कोई, यम जीवनको ले जाय है । सो यम (काल) कोई जीव नाहीं, जड़ है । तातें जाके मत विषै काल जड़ द्रव्य को यम नामा जीव मानते ६७ ส गि गी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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