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________________ भेदनादि दुःख पागे तथा लोक विडं तथा शास्त्रन विक्रोसा कहैं हैं। फलाना धर्मात्मा धर्मप्रसाद ते देव मया। || | कलाना पापाचार करि नरक गया। ऐसे-ऐसे व्याख्यान लौकिक विर्षे प्रकट सनिये है। अरु कदाचित ऐसी होती कि जो जैसा मरे तैसा हो उपजै तौ "पुण्य-चाप का फल जीव भोगवैगा" ऐसा नहीं कहते। तातै भो भव्य ! आत्मा, यह चार गति संसार विर्षे जीव अनन्त काल का अरहट की नाई भ्रमण करे है। पाप के फल ते अधोगति विर्षे और पुण्य फल ते उर्ध्वगति विर्षे इत्यादिक जीव उपजे हैं। तातें जाके मत विर्षे पुण्य-पाय का फल उथापि ( नष्ट करि) जैसे का तैसा ही उपजता मानै ताके आप्न आगम, पद जसत्य हैं। सो हेय हैं। तार्ते भो भव्य ! धर्मार्थी, अशुभ कर्म किये दुःख स्थान विणे उपजै है और शुभ-कम ते सुख स्थान दिणे उपजें है। ऐसा धारणि करि मिथ्या श्रद्धान तजि। तो तेरा भला होय ऐसे या स्थिरवादी का भरम गुमाय, जिन-भाषित श्रद्धान कराया। इति स्थिरवादी का सम्वाद कथन । ७। आगे केई विपरीतमति अजीव ते जीव उपजता माने हैं तिनकौं समझाइये है। केई भोले प्राणी ऐसा कहैं हैं जो यह आकाश तेजल बरसै है सो इन्द्र है। ताके भरम मिटावे कौ ताकौं कहिये हैं। हे भाई! मेघ है सो तौ वरषा-ऋतु विषैऋतु का कारण पाय "पुद्गल" है सो जलमई परणमि जाय है। सो पगलन के स्कन्ध वरषा-ऋत के कारण जलरूप होय, धारा सहित वरखें हैं। सो यह जल अचेतन है जड़ है, चेतन नाहीं। मुर्तिक पुद्गल है सम्बन्ध जलमयो भये पोछे अन्तर्मुहुर्त काल गये उस जल में अपकाधिक एकेन्द्रिय थावर नाम-कर्म के उदयते महापाप के फल करि आय, एकेन्द्रिय जीव उपज हैं। सो यह महादुःखी हैं। ताकै एक शरीर ही है। च्यारि इन्द्रिय नाहीं। पाप उदयतें होय हैं इन्द्र है सो पंचेन्द्रिय है महा जप, संयम, ध्यान, पूजा, दान आदि अनेक धर्म के फलते होय है। सो इन्द्र देवनि का नाथ बड़ी शक्ति का धारी है। अद्भुत बड़ी लक्ष्मी का ईश्वर है। अनेक देवांगना सहित सुख का मोगनहारा है रीसा इन्द्र पद वीतरागी, योगीश्वर समता रस के स्वादी-षट काय के पीहर (रक्षक) दीनदयाल, जगत् गुरु, ६४ | उत्कृष्ट दया के फलते इन्द्र होंय हैं। होन-पुनोन को इन्द्र पद होता नाहीं। तातै इन्द्र है सो देव नाथ है और मेघ है सो पुद्गल स्कन्ध को मिलापते ऋनु का कारण पाय जल होय वरसै है तामैं पाप करनहारा महाजीव | हिंसा का करनहारा जीव माय एकेन्द्रिय उपजे है। यहां प्रत्र-जो इन्द्र नहों तो ऐसा निर्मल आकाश विर्षे
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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