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________________ श्री सु इ टि ५८ रु परलोक भी है और पाप के फलतें जीव नरक पशु के दुख पावै है। मनुष्य ही होय तो अन्धा, लूला, बहरा, दरिद्रो, अभिमानी, रोगी, दोन, वस्त्र-रहित होय, पुण्य के फल तैं देव होय अरु मनुष्य होय तो सर्व दुख-रहित सुखी होय तातै विवेकी हैं सो पाप नहीं करें हैं। बड़े बुद्धिमान शुभकार्य करें हैं। एक अज्ञानी हैं सो भी कह है । जो कोई हमारी दया लेयके हमारी आत्मा जो अनवट बिना दुखी है सो देय पोखै। हमारी दया करि रोटी वस्तर देय हमारी आत्मा पोख सुखी करै, ताकौं पुण्य होय । ऐसे रंक भी कहै है । तातें है मव्यात्मा, देखि । जीव भी है, जीव की दया भी है। पाप भी है, पाप का फल नरकादि दुःख भी हैं। पुण्य भी है, पुण्य का फल स्वर्गादिक भी है। ऐसा जानिकें अनेक मतन के धर्मात्मा हैं सो पाप का निषेध करें हैं । अरु पुण्य करना उपादेय बतावें हैं । पाप-पुण्य फल के स्थान, अनादि संसारिक देवादिक चारि गति रचना सहित षद्रव्यनि करि बनी जो जगत् रचना, सो यह चारि गति रचना भी अनादि की है । तातें है नास्तिबुद्धि देख । संसार भी है, अरु सर्वकर्मनाश करनहारा भी है। सर्व दुख तैं रहित सुख समूह अतीन्द्रिय भोग का स्वादी अनन्तबली ज्योतिस्वरूप परब्रह्म भगवानपद का धारी सदैव मोक्षरूप है, तातें मोक्ष भी है। हे नास्तिकमती ! तेरा नास्तिमत सर्वमतन तैं खण्ड्या जाय है। तेरे नास्तिकमत का सरधान होतें-सर्वमत, देहरे ( मन्दिर ) दान, पूजा, भगवान की भक्ति, जप, संघम, शीलादिक, भले जगत् के पूज्य गुरा, तिन सर्व को अभाव होय । तातें कोई मत तैं मिलता नाहीं । सर्व मतन के शास्त्र के अभिप्राय तैं, अरु लौकिक प्रवृत्तितैं नास्तिमत झूठा भया। जो लोक मैं तौ दान-पूजादि गुण पूज्य दीखें। तातें नास्तिमत अनेक भाव विचारत असत्य हैं। तातैं जाके मत विषै आत्मा नास्ति कह्या होय ताके आप्त आगम, पदार्थ, अति हेय हैं। ऐसे नास्तिकमती का श्रद्धान मिटाय स्याद्वाद मत के सनमुख किया। इति नास्तिनती सम्वाद विजय कथन ४ आगे अवतारवादी एकान्तमती का सम्वाद लिखिये है । आगे कई एक अवतारवादी मोक्ष गये आत्मा का पीछा अवतार मानें हैं। ताको कहिये हैं। भो मोक्षजीवन कूं अवतार मानने-हारै भव्य आत्मा तू सुनि । चांवल जामैं निकसें ऐसा धान ताकौ उगावै तौ उ है। जब धानक कूट, ताके छिलका दूरिकरि, शुद्ध चांवल भए पीछे उनको उनके ही भुसमैं धरि उगईए. ५८ ह रं गि पो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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