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________________ हि ६०० कैं दोय पुत्र घुगल भये । तिनमें बड़ेका नाम शुभचन्द्र, अरु छोटेका नाम भतृहरि । ये दोय-पुत्र क्रम से, स्याने भये । जनेक विद्या-प्रवीण भये । एकदिन राजा सिंह, संसार तें उदास भये सो मुंजकूं राज्य, अरु सिंहलकू युवराज पद देय, आप यति पद धारि, आत्म कल्याण किया। अब राजा मुंज, राज्य करे सो एक दिन, राजा वन-क्रीड़ाकों गया था सो जावते, एक मन्दिर के द्वार, एक तेली ने कुदार नाम विद्या साधी थी सो ताने कही — हे राजन् मोकूं विद्या सधी है सो मो समान, पृथ्वी में बली नाहीं । तब राजा ने कही तू नौच-कुली कूं राती विद्या का बल कबहूं हो सकता नाहीं । तब तेली ने दोऊ हाथतें जोर करि विद्या का कुदार, धरती में गाड़या । कहो जो कोई योद्धा होय. तो काढ़ी। तब राजा ने अपने सामन्तनकूं कही काढ़ौ सो सर्व सामन्त, बड़े-बड़े मल्ल पचि पचिहारे, कुदार नाहीं निकस्या। तब राजा सिंहल उठ्या सो एक हाथ कुदार निकास्या । पा सिंहल ने एक हाथते, कुदार गाड्या अरु कही पाकी काढौ, तो जानें। तब तैली, विद्या-बल करि हारधा तथा राजा के मल्ल-सुमट पचिहारे, कुदार नाहीं निकस्या । यतेमें राजा सिंहलके दोय पुत्र जाये । 'अरु पितातें कही। प्रभो! हमकौं आज्ञा करो तो हम कादें। तब राजा, हँस करि कही। भो पुत्र हो यहाँ तिहारा काम नाहीं । तिहारी बराबरी के लड़का - बालकन में कोड़ा करो । तब कुमारों ने कही हे नाथ! बिना हाथ लगाये कादै, तो आपके पुत्र जानहु । सो हठ करि, पिता तैं आज्ञा लेय, अपने मस्तक के केश लेय, कुदार में उरकाय कैं टक्या सोच कें कुदार निकस्था सो इनका पौरुष देख, राजा मुज ने मन्त्री सूं कही इनकूं मारौ इन बालकन छतै, मेरा राज्य जमैं नाहीं । तब मन्त्री ने इन कुमारनकूं कही तुम्हारा बाबा तुमको मारधा चाह । तातें तुम कोई दिन यहां सू' भागो। तब दोऊ कुमारननैं, अपने पितासूं कही - भो नाथ | हम कूं राजा मुअ मारचा चाह है, सो हमकों कहा माझा होय है ? तब राजा सिंहल ने कही तुम ताक मारौ । जो आपको हमें, तो हनताको श्राप भी हनिये । याका दोष नाहीं । यह राजनीति है। ऐसे वचन पिता के सुनि, शुभचन्द्र अरु भर्तृहरि इन दोऊ कुमारननैं कही हे नाथ! हमारें तो वे आपको समान हैं सो बाबा को कैसे मारें ? सो संसार तें उदास होय, विरक्त भये । अरु दोऊ भाई, तप धरते भये । सो शुभचन्द्र तो वन में जाय, धर्म धुरन्धर गुरु के पास जिन दीक्षा धरि मुनि भये । नाना तप करि अनेक ऋद्धि पाई। छोटे भाई ६००
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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