SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सु f ५८७ गली सम्बन्धी, ३६ दरवाजे हुए। प्रथम कोट व प्रथम वेदी ताके बीचि सो प्रथम भूमि है। ताते प्रथम कोट व प्रथम वेदी, इनके बीच गली, सो प्रथम भूमि कहिये। ऐसे ही अन्य द्वारनके बीच द्वितीयादि भूमि जानना । तहाँ प्रथम भूमिकी गली ताके मध्य विषै तौ मानस्तम है सो च्यारि दिशा सम्बन्धी, ४ मानस्तम हैं। एक-एक मानस्तभके च्यारों दिशानमें च्यारि च्यारि बावड़ी हैं। इस गलीके दोऊ पार्श्वन विषै दोय नाटयशाला है। ऐसी ही चौथी गली विषै दोय नाट्यशाला हैं । घट्टी गली के दोऊ पावन विषै या दूनी नाट्यशाला हैं और सप्तमी भूमि में, च्यारि दिशा में नौ-नौ रत्न- स्तूप हैं। आठवीं भूमि विषै बारह सभा हैं। जो गली के पार्श्वन की लम्बाई सहित वेदी हैं सो अनेक द्वारन सहित हैं। तिन द्वारन के रत्नमयी कपाट हैं कोई भव्य, इनके चौतरफ को रचना देखे चाहे हैं। तो इन गलीन के द्वारन होय, जाय आयें है। या प्रकार गलोन की सामान्य रचना कही जो इन सर्वके मध्यभागमें तीनि पीठि हैं। ताके ऊपर गन्धकुटी है। तामें सिंहासन है । तापै कमल है। तापर श्रीभगवान् अन्तरिक्ष च्यारि अंगुल, विराज हैं सो अष्ट प्रातिहार्य सहित च्यारि चतुष्टय लिये, विराजमान जानना । ऐसे इनकी सामान्यपने रचना कहो । अब तिनके स्थान बताइए है। इनका विशेष कहिए है। तहाँ ४ कोट कहे तिनमें पहिला कोट, समवशरण को अन्तभूमि विषै है सो पञ्च-वर्ण, रत्न चूर्ण का है। तातें याका नाम, धूलिशाल है। नाना प्रकार वर्ण सहित इन्द्र धनुष समान विचित्र है। दूसरा कोट, तपाय स्वर्ण समान लाल है। तीसरा कोट, स्वर्ण समान पीत है। चौथा कोट स्फटिकमणि समान श्वेत है। पांचों ही वेदी, स्वर्ण समान पीत हैं। ये च्यारि कोट पांच वेदी नव हो के ऊपर, अनेक वर्ण की ध्वजा अरु अनेक शोभा सहित महल शोभायमान हैं। यहां वैदी अरु कोट विषै एता विशेष है जो वेदी तौ नीचे तैं लैय ऊपर पर्यन्त, समान चौड़ी हैं। अरु अरु कोट नीचे तैं चौड़ा अरु ऊपर होनक्रम है। अब इनके बीचि, आठ भूमि हैं। ताका विशेष कहिये है —-तहां प्रथम भूमि विषै, एक चैत्यालय है अरु पाँच अन्य मन्दिर हैं। इनके बीच बावड़ी, वन, वृक्ष इत्यादि को अनेक रचना है। दूसरी भूमि विषै, खातिका है । सो रत्नमयी पगथेन (पैंड़ी ) करि सहित है। निर्मल-जल करि भरी है। सो जल की उड़ाई (गहरी ) जिन देव के शरीर तैं चौथे भाग है अरु वह स्वाई, कमलन करि पूरित, नाना प्रकार जलचर व हंसादिक जीवन करि शोभनीय है और तीसरी भूमि ५८७ मि पो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy