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________________ पण्य उपजावने को नाना दान, पजा, तप, संयम काहे को करेगा ? क्योंकि पुण्य का फल तो होता नांहो।। तातै ऐसे श्रद्धानतें तो पृथ्वी में पाप बहुत फैलि जाय । शास्त्र-उपदेश, देहरे (मन्दिर) बनावना, तप, संयम, ।। वीर्य गारमा माविष्ठ के आज सो र सर्व मिट जायें। सो या वचन कहने विर्षे प्रत्यक्ष में बड़ी विपरोतिता प्रगट होय और जे पापाचारो विषयाभिलाषी ते ऐसा कहेंगे जो हमारी शक्ति पाप करने की नाही जो कुछ करे है सो परमात्मा करै है। तो पाप की वृद्धि होयगी । जो तुम कहोगे कि ए पाप-पुण्य का फल संसारी जीवन को हो होय है तो तुम्हारे परमात्मा की एक सत्ता का क्या माहात्म्य रहा ? ताते हे भाई! तूं ऐसा भ्रम तजिकै रोसा दृढ़ करि कि जो जीव पुण्य-पाप करै ताका फल ते हो जीव सुख-दुःस्व स्वर्ग नरकादिक भोगवे हैं। ऐसा श्रद्धान होतें यह जीव पाप का फल महादुःख जानि पाप तजै और जे जीव दान पूजा बड़े-बड़े दुद्धर तप संयम इन आदिक शुभ कर्म करें सो ही जीव स्वर्गादिक विष नाना प्रकार इन्द्रियजन्य सुख भोग हैं। तात मो-भो धर्माभिलाषी तुं ऐसा सममि जो करे सो पावै।' अरु कोई भ्रमबुद्धि कहै सो हमको पाप कर्म का बन्ध होता नहीं। सो इस अज्ञान आत्मा ने अपनी दृष्टि ससा (खरगोश ) की-सी करलई है। जैसे ससा कान तें अपने नैत्र मुंद सन्तोषी भया, तो क्या भया? जब यह बैटकी (शिकारी) नहीं मारे तब ही सुखी होय। जैसे कोई एक शिकारी एक ससा के मारिवे को वन में गया सो ससा भागा। ताके पीछे शिकारी लागा। सो ससा के बते भागा नहीं गया तब अपने कानन तें नेत्र मुंद करि बैठ रहा। याने जानो शिकारी गया, मोकू जब यहाँ कोई दीखता नहीं। ऐसा विचारि सुखी भया, तो क्या भया? पीछे तें नाय शिकारी ने ससा के शस्त्र मारया। सो ससा अपनी मूर्खता के जोग मर चा। तैसे ही यह एकान्तमती भौरा जीव ऐसा विचार है जो श पाप मोकों नहीं लाग है, रोसा जानि राजी होय पायभार लेह नरकादिक दुःस्स को प्राप्त भया चाहै है । सो पापाचारी, पराये धन हरणहारे, पराये मान हरनहारे, अपनी महत्ता बताय औरन कं छलि अपने उपायन तें ताका मान खण्ड करि, अपने महत्त्व भाव का किंचित चमत्कार औरन कुं बताय क, अपनी बुद्धि की चतुरता करि माया जो दगाबाजी ताको विचारि, मोरे जीवन का मान हरि. धन हरि, बहकाय, कुपंथ लगाय, आपको धर्मो जानि रोसा मानते भये जो हमको पाप नहीं लागे। ऐसे विचारि पाप
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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