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________________ ५८० निर्वाणक्षेत्र सम्मेदशिखर है। ताको नमस्कार होऊ। २ वासपज्य-जिन का निर्वाणक्षेत्र, चम्पापुरी का वन है ताकू नमस्कार होऊ।३। नैमिनाथ-जिन कू आदि लैय बहत्तरि कोडि मुनि का निर्वाणक्षेत्र गिरनार शिखर ताकों नमस्कार होऊ।४।महावीर का निर्वाणक्षेत्र पावापुर का पर्वत है। ताकं नमस्कार होऊ। ५। वरदत्त आदि साढ़े तीन कोडि मुनि तारङ्गा शिखर" मोक्ष गये। तिस क्षेत्र नमस्कार होऊ ।६। लाड नरेन्द्र आदि पाँच कोडि मुनि का निर्वाणक्षेत्र पावागिर है। ताको नमस्कार होऊ। ७। तीन पाण्डवन कू आदि लेय अष्ट कोड़ि मुनि का निर्वाणक्षेत्र शत्रुजय क्षेत्र है। ताकी नमस्कार होऊ ।८। बल भद्रादि आठ कोडि मुनि के मोक्ष होने का क्षेत्र गजपंथ शिखर ताकौं नमस्कार होऊ।।। रामचन्द्र, सुग्रीव, हनुमान दिलाकडी वरों शिक्षेत सुद्धोगित है। ता क्षेत्र कू नमस्कार होऊ ।२०। रावण के पुत्रादि साढ़े बारह कोड़ि मुनि का निर्वाणक्षेत्र रेवा-नदी के तट पर सिद्धवर-कूट है। तिस क्षेत्रकू नमस्कार होऊ । ११ । इन्द्रजीत, कुम्भकर्स, रावण के भाई-पुत्र तिनका निर्वाणक्षेत्र चुलिगिर नाम शिखर है। ता क्षेत्र कं नमस्कार होऊ । २२। अचलापुर को ईशान दिशा में, मेढ़गिर नाम शिखर है ताकौं मुक्तागिर भी कहै हैं। सो यहाँ तें साढ़े तीन कोड़ि मुनि मुक्ति गये। सो ताकू नमस्कार होऊ ।२३। राजा दशरथ के पुत्रनकं आदि लेथ एक कोडि मुनि का निर्वाणक्षेत्र, कोटिशिला | है। ताफू नमस्कार होऊ । २४1 इत्यादिक अढाई द्वीप वि तिष्ठते सिद्धक्षेत्र, तिनक नमस्कार होऊ। ये । सिद्धक्षेत्र, इस ग्रन्ध के अन्त-समाप्ति विष, कवीश्वर कं भव-भव मङ्गल करने में, सहाय होऊ तथा इस ग्रन्थ के अभ्यासी भव्य जीव तिनक, सिद्धक्षेत्र-यात्रा समान फल विर्षे, सहाय होऊ। ऐसे सिद्धक्षेत्र कं नमस्कार करि अन्त-मङ्गल किया। आगे सिद्ध-लोक समान, अकृत्रिम-चैत्यालय मङ्गलकारी हैं। तात यहां ग्रन्थ के अन्त में, आठ कोडि छजन लाख सत्यानवे हजार व्यारि सौ इक्यासी जिन-मन्दिर, अनादिनिधन अकृत्रिम हैं। तिन प्रत्येक में एक सौ आठ जिनबिम्ब हैं। तिनकं नमस्कार होऊ। तिनमें सात कोड़ि बहत्तर लाख, तौ पाताल-लोक हैं। च्यारि सौ अदावन, मध्यलोक में है। चौरासी लाख सनतानवै हजार तैबीस, ऊर्ध्व-लोक में हैं ते सब, मङ्गल को राशि हैं जिन-मन्दिर, सो कहिये हैं-उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य, भेद करि तीन प्रकार हैं। । सो उत्कृष्ट जिन-मन्दिर, लम्बे २०० योजन, चौड़े ५० योजन और ऊंचे ७५ योजन हैं और मध्य चैत्यालयों का
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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