SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष, आठवें की बारह हजार वर्ष और नववे की एक हजार वर्ष । यह नारायण की वायु कही ।। इतनी ही नव प्रति-नारायस की आयु जानना। बलभद्र की कडू अधिक है, सो जागे कहेंगे। इति नाराबस, प्रति-नारायस की आयु । जागे बलभद्र की आयु कहिये है। तहाँ पहिले बलभद्र की वायु सत्यासी लाख वर्ष, दूजे को सत्तरि लाख वर्ष.तीसरे की साठ लाग्न वर्ष,चौधे की बत्तीस लाख वर्ष, पांचवें की कछु अधिक दश लाख वर्ण, घट की पैंसठ हजार वर्ष, सातवें की बतोस हजार वर्ष, आठवें की सग्रह हजार वर्ष और नववे की बारह सौ वर्ण-ये नव बलभद्र की आयु कहीं। आगे चक्री व नारायण का उपजने का समय कहिये है। तहा मादि जिन से लेय पन्द्रहवें धर्मनाथ पर्यन्त तिनमें वृषभ अजित इनके समय में तो दोय चक्री भये अरु पचास लार कोडि सागर काल का बीचि अन्तर भया। तामें कोई पदवीधारी पुरुष नहीं भया अरू श्रेयांस ते लगाय धर्मनाथ पर्यन्त पांच तीर्थङ्करों के समय में पांच नारायण मये। सो तीर्थक्करों के काल में ही सभा-नायक मये। अन्तराल में नाहों भये। धर्मनाथ के पीछे तीसरे चौथे चक्री भये । ता पीछे शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, बरहनाथ ये तीन तीर्थर ही चनी भये। ता पीछे छठवाँ नारायरा भया । ताके पीछे पाठवा चक्रवर्ती भया। ताके पीछे मल्लिनाथ जिन भये। मल्लिनाथ जिन के पीछे नौवां महापा चक्री भया। ता पीछे सातवां नारायण भया। ता पोछे मुनिसुव्रतनाथ मये। ताके पीछे दशवां चक्री हरिषेण भया। ताके पीछे पाठवां नारायण भया। ताके पीछे नमिनाथ-जिन भये बरु नमिनाथ के पोछे ग्यारहवां चक्री भया । ताके पीछे नैमिनाथ भये तिनके समय में नव नारायण और बलभद्रये तिन छते ही सभानायक भए और नैमिनाथ के पीछे बारहवां चक्री भया। ताके पीछे पार्श्वनाथ और महाबीर भये। इस मांति त्रेसठ शलाका पुरुष भरा, तिनकी रचना कही। इति चक्रो और नारायण के उपजने का समय कह्या। आगे तीर्थङ्कर की आयु की विगत कहिश है। तहां ऋषभदेव का कुमारकाल, बीस लाख पूर्व का। श्रेसठ लाख पूर्व राज्य किया। तप एक हजार वर्ष किया और केवलज्ञान सहित उपदेश हजार वर्ष घाटि, लाख पूर्व किया। ये सर्व चौरासी लाख पूर्व की विगत कही।।। अजितनाथ-जिन का कुमार काल, अठारह लाख पूर्व। एक पूर्वाङ्ग अधिक, तिरेपण लाल पूर्व राज्य में व्यतीते संयम का काल बारह वर्ण रहा एक पूर्वाङ्ग अरु बारह वर्ष घाटि एक लाख पूर्व केवलज्ञान सहित, समवशरण सहित विहार किया। यह बहसरि लान पूर्व ५५६
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy