SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ एक-एक हजार मुनि मोक्ष गए। इति भागे बारह चक्रवर्तीके नाम-तहां प्रथम चक्रवर्ती भरत, सो बादिनाथके समय भए। आगे दूसरा सगर नाम षटखण्डी, सो अजितनाथके समय भया। तीसरा मघवा नाम चक्री, अरु चौथा सनत्कुमार चक्री, र धर्मनाथ-जिनके मोक्ष गए पीछे, अरु शान्तिनाथके पहिले. अन्तरालमें भए। शान्तिनाथ, कंथुनाथा, अरहनाथ ए तीन जिन, अपने-अपने समयमें, आपही चक्री भए । और अरहनाथके मोक्ष गर पोछे, अरु मल्लिनाथके पहिले, इस अन्तरालमें आठवां सभूमि नाम चक्री भया। और मल्लिनाथके पीछे, अरु मुनिसुव्रतके पहिले अन्तरालमें नववां महापटुम नाम चक्रो भया। अरु मुनिसुव्रतके पीछे अस नमिनाधके पहिले, दशवें हरिषेण नाम चक्रो भये । नमिनाशके पोछे अरु नेमिनाथके पहिले. ग्यारहवें जयसेन नाम चक्री भये। नेमिनाथ के पीछे अरु पार्शनाधक पहिले बारहने ब्रह्मदत्त नाम चक्री भए। इति चक्रवर्ती नाम। आगे इन चक्रीनको गति-गमन कहिंग है-तहां आठवां सममि अरु बारहवा ब्रह्मदत्त ए दोय तौ सप्तम नरक सिधारे। अरु तीसरा मघवा नाम चकी, अरु चौथा सनत्कुमार चक्री ए दोय, तीसरे स्वर्ग गये। अरु बाकी आठ चक्री, आठ-कर्म नाश कर, अष्टम भूमि (मोक्ष) वि. सिद्धपद धार विराम हरि चन्द्रो गति । जागे नव नारायणके नाम तथा किनके समय भये सो कहिए है। तहां पहिला त्रिपृष्ठ नाम नारायण तो श्रेयांसनाथाके समयमें भया।। दुसरा द्विपृष्ठ नारायण वासपज्य जिनके समयमैं भया।२। तीसरा स्वयंभू नाम नारायण, निमलनाथके समय में मया।३। और चौथा पुरुषोत्तम नारायश, अनन्तनाथके समय भया 1४। पोचना पुरुषसिंह नारायण धर्मनाथके समय भया।। बुढा पुण्डरीक नारायण अरहनाटाके पीछे अरु मल्लिनाथके पहिले अन्तरालमैं भया।६। मल्लिनाशके पीछे अरु मुनि सुव्रतनाथके पहिले इस अन्तरालमें, सातयां दत्त नाम नारायण भया । ७ । मुनिसुव्रतनाथके पीछे अरु नमिनाथके पहिले, आठवां लक्ष्मण नाम नारायण भया ।८ नववें नारायण कृष्ण देव भए, सो नेमिनाथके समय मये।६। र नव नारायणके नाम कहे सो इनमें पहिला त्रिपृष्ठ, दूसरा द्विपृष्ठ, तीसरा स्वयंभू, चौथा पुरुषोत्तम, पांचवां पुरुषसिंह, छठा पुण्डरीक- श षट्तो षट्वीं मघवी नाम पृथ्वीके धाम पधारे। और सातवा दत्त, आठवां और नौवो ए मेघा पृथ्वीमें गए। एनवं ही नारायस, तीन सण्डके नाथ महा विभूति सहित देव-विद्याधर-भूमिगोचरी बड़े-बड़े राजान् करि वन्दनीय, प्रजाके प्रतिपालक हैं।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy