SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 548
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साये से सर्व क्रिया नष्ट होय। और शिवपुराण में कहा है। जो दया समान दूसरा तीर्थ नाहीं। दया भाव है, सो ही एक मला तीर्थ है दया बिना तीर्थफल नाहीं ऐसे कहे जो अनेक धर्म अङ्ग सो इनकं पालें। वही उत्तम धर्मका धारी क्रियाब्रह्म है। इति क्रियाब्रह्म। आगे कुलब्रह्म के दशभेद अन्यमत संबन्धी कहे हैं सो ही बताईये है काव्य-सुरो मुनीश्वरो विप्रो, वेश्यः क्षत्रिय शूद्रको। विज्ञातिपसुभातंग, म्लेच्छाश्च दश बातयः॥ अर्थ-देव जाति, मुनि जाति, विप्र जाति, वैश्य जाति, क्षत्रिय जाति, शद्र जाति, विजाति, पशु जाति म्लेच्छ जाति, मातङ्ग जाति-...ये दश भेद व्यास भाषित मत्स्यारा भारपार है! हाया बर्ग-जहाँ तस्वझान विर्षे प्रवीण होय, अपने आत्म कल्याण का अर्थो होय, निहिंसक क्रिया का करनहारा होय, बहु जारम्भ-परिग्रह का त्यागी सन्तोषी होय, त्रिकाल सन्ध्या की क्रिया में सावधान होय, आपा-पर के शान का धारी होय, आत्म-तत्त्ववेत्ता होय इत्यादिक गुण सहित होय, सो देव जाति का ब्राह्मण है । और जो उत्तम तीन कुल.का भोजन करनहारा होय, नगर का वास तजि वन का निवासी होय, तीनकाल जात्मध्यान में प्रवर्तनहारा होय इत्यादिक गुणसहित होय, सो ऋषीश्वर जाति का ब्राह्मण है। २१और अनेक प्रासुक सुगन्ध द्रव्य मिलाय, अग्नि मैं खे-होमै । अग्नि कबहूँ बुझने नहीं देय । होम-क्रिया में सावधान होय, दयारूप धर्म जानता होय, देव-गुरु-पूजा मैं विनयवान होय, अपने भोजन में तें अतिथि कौं देय, गैसे अतिथि व्रत का धारी होय, गृहस्थ के षट् कर्म-क्रिया में सावधान होय, ऐसे गुणसहित जो होय, सो विप्र जाति का ब्राह्मण है।३। और जे हस्ती, घोटक, रथादि की असवारी विर्षे प्रवोश होय । युद्ध करवं की जाकै चाह होय । युद्ध की अनेक-कला तीर गोली, खड़ग, पटा, सेल्ह, धूप, बांकि, खंजर, छुरी, कटारी इत्यादिक शस्त्र-कला मैं सावधान होय ! लड़ने में मरने कू नहीं डरता होय । मन का शुरवीर होय । बड़े आरम्म, राज्य-सम्पदा का मोगो होय । जो इन गुणन सहित होय, सो क्षत्रिय जाति का ब्राह्मण है।४। ब्राहारा के कुल में तो उपज्या होय अरु खेती करता होय । गाय, महिष, वृषभादि पशन के पालने की कला में प्रवीरा होय । बाचार रहित खान-पान का करनहारा होय । इन लक्षण सहित होय, सी शुद्र जाति का ब्राह्मण हैश ब्राह्मस के कुल में || उपज्या होय अरु इन वाणिज्य व्यापार की चतुराई जानता होय। वस्त्र परीक्षा सोना, चाँदी की परीक्षा । ।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy