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________________ व्रत सधन वन में सहाय करे। भावार्थ-यह ब्रह्मचर्य व्रत कैसा है ? याके फल ते नाना प्रकार, पंचेन्द्रिय, देवोपुनीत अद्भुत, अमर-पर्याय के सस होय है और शीलवान जीव कं कर्म-रहित जो मोक्ष, ताके अखण्ड | अविनाशी, अचल, अतीन्द्रिय-सुख होय हैं। शीलवान् के चौतरफ अग्नि-ज्वाला जल रही होय, तौ भो ताहि बाधा नहीं होय तथा शीलवान् पुरुष को कोई पाप्ने काम-जारा गिगा जोमा सेन, पश होय। जैसे—सीता के शील-माहात्म्य करि, अग्नि जल भई । तैसे ही शीलवान् कुंअग्नि का भय नहीं होय । दश प्रकार के कल्पवृक्ष का दिया वांच्छित सुख, सो शील के माहात्म्य तें सहज हो होय । शीलवान् पुरुष अटवी मैं जाय पड़े, तो बाधा नहीं होय । कैसा है वन ? महाउद्यान बड़े-बड़े सघन वृत्त का समूह, तहां महाभयानक सिंहन के धडूके (गुफाएँ) हैं तहाँ मैघ की नाईं, हस्तीन को गर्जना होय । तहां सिंहन को गर्षना के शब्द सुनि, मदोन्मत्त हस्तीन के समूह स्वेच्छाचारी भये, वन के वृक्ष उखाड़ते. लीला करते फिरें। सो सिंह के शब्द सुनकर, हस्ती अपने छावान (बच्चों) सहित, भागते फिरें हैं। उतर गया हमद जिनका, सो मयवान भये भागते दीखें हैं। जा वन में बड़े-बड़े पर्वत, सो गुफान करि पोले होय रहे हैं। तिन गुफानत निकसे जो बढ़े दीर्घ तन के धारी अजगर सर्प, सौ दीर्घ उच्छवास लेते गुफा से निकसते देखिये है इत्यादिक भय से भरा जो भयानक वन, सो ऐसे वन वि शीलवान आय पड़े। तो शोल के माहात्म्य करि, निःखेद होय निकसै। ऐसे अतिशय सहित जो ये शोलगुण ताको रक्षा करनी विवेकीनों योग्य है। आगे और भी शोल-गुस का माहात्म्य बतावे हैंगाथा-सिसरो अबंभ भंजुई, वंभ बतोम वज छिण एको । काम भुयंगय मंतो, वसि करई वंभ एय गडाये ॥ १४८ ॥ अर्थ-सिसरो अवंभ भंजई कहिये, अब्रा रूपी पर्वत के फोड़वे कौं। वंभ बतीय वज्ज छिण राको कहिये, ब्रह्मचर्य राक वन के समान है। काम भुयंगय मंत्तो कहिये, काम रूपी सर्प के वश करवे कों ब्रह्मचर्य एक मन्त्र समान है। बसि करई वभ एय गरुडाये कहिये, तथा ताके वश करने कू ब्रह्मचर्य एक गरुड़ समान है। भावार्थ-कुशील रूपी उत्तुंग पर्वत के चूरण करवे • शील-भाव वज्र समान है। एक छिन में कुशील रूपी पर्वतन के फोड़े है और कैसा है शील-भाव ? कुशोल-भाव रुपी जो सर्प, ताके वश करवे कं मन्त्र समान है । तथा ताके वशी करवेक शील-भाव गरुड़ समान है। ऐसे शीलव्रत की रक्षा करना योग्य है। आगे और भी झील
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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