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________________ श्री सु " 备 ५२७ ब्रह्मवारी, अपना शील, संतोष, तप, संयम, व्रत, या सरित गरा जगतमें एगट करि, और जीवन को प्राप समान गुणवान करें। जो भोले, अज्ञानी, अशुभाचारी, दया रहित, पाप कलङ्क सहित जीव, तिनको धर्मोपदेश देय, तिनके दोष मेटि शुद्ध निर्दोष करें। यह गृहस्थाचार्य तीन कुलका उपण्या पदके ब्रहा धारी विषै यह प्रजा संबंधीतर गुण है। ताके योग तें औरन कौं गुणरूप करे। कदाचित् यह गुरु नहीं होय तो अज्ञानी के संग तैं आप अज्ञानी होय । गुण रहित होय। तब अपना पूज्य पद नहीं रहे। तार्ते प्रजाके गुणों हैं मिले नाहीं अलग रहे। याका नाम प्रजा संबन्धतिर दशवां अधिकार है। २०। ऐसे ये बाल विद्या तैं लगाय प्रजा संबन्धान्तर दश अधिकार कहे। ताको जुदी जुदी क्रियानका कथन कह्या। सो जो इन दश क्रिया रूप प्रवृत्ते । सो क्रिया ब्रह्म जानना । तीन कुलका उपज्या धर्मो जोव इन क्रियाओं सहित शीलादिक गुण पालै सो क्रिया ब्रह्म है। इति क्रिया ब्रह्म के दश मेद आगे ब्राह्मण झील गुणकी प्रतिपालना करें, सो ब्रह्मचारी कहावे । सो शोलाधिकार लिखिये है - गाथा - सिव मिंद जाण द्वारय, भव सायर पार तार संणीए । अघ तम हर रबि जेहो, मोख मग्गोय बंभ भावाए ॥ १४३ ॥ अर्थ- शिव मिंद जाण द्वारय कहिये मोक्ष महलके जाने कूं द्वार। भव सायर पार तार तंखीरा कहिये संसार सागरके तरवे कूं नाव समान । अघ तम हर रवि जैहो कहिये, पाप रूप अन्धकार के नाशवे कूं सूर्य समान । मोख मग्गोय वंभ भावारा कहिये मोक्ष मार्ग रूप एक ब्रह्म भाव ही है। भावार्थ- ब्रह्मचर्य भाव है सो मोक्ष महल में जानेका एक ही ये मार्ग है। इस शील बिना मोक्षकों जावेका कोई द्वार नाहीं, कैसा है शोलभाव संसार समुद्र के तिरवे को जहाज समान है। कैसा है भव- समुद्र, महागम्भीर राग-द्वेष रूप जो जल, ताकरि भरया है। तामें विकार रूप अनेक तरंगे उठे हैं। और वेद-भाव, रति अरति क्रोध मान, माया लोभादि ये कषाय हैं। सो हो भये मगरादि जलचर क्रूर जीव। तिनके केलि (क्रीड़ा) करने का स्थान, ये भव सागर जानना ऐसे विकट भवसागर तारवे कूं ये शील व्रत नाव समान है। कैसा है शील, पाप अन्धकार करि चारि-गति के जीवन कूं, मोक्ष मार्ग नहीं सू। ऐसा अन्धकार नाशवें कूं यह ब्रह्मचर्य - भाव सूर्य समान है। तातें मोक्षका मार्ग, एक शोल ही है। भावार्थ - इस झील गुणा बिना अनेक धर्म-अञ्जनका साधन, कार्यकारी नाहीं । तातें ५९७ ८ रं 何 श्री
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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