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________________ बरछी छुरी, आदि पर-जीव घातक शस्त्र बनावे, तिनत दयावान लेन-देन नाहीं करें। कुसी, कूदाली, खुरपी ।। हँसिया इनके बनाने वालों से भी लेन-देन नाही करें। और भमिके खोदनेहारे, ताल-नदी-बावड़ी-कूप इनमें जल काढ़ने व फोड़नेहारेन से भी लेन-देन नाहीं करें। और जामैं बहुत जल बिलोलना पड़े, बहुत नीर ढोलना पड़ें बहुत अग्नि जलाना पड़े तथा जो नील-आलका काम करें, उनके साथ भी लेन-देन नाहीं करें। इत्यादिक सब खेटक-हिंसाका दोष करें हैं इनका वैसा घरमें आये, खेटकका सा दोष उपजावै। और अन्न, तिल, जीरा, धना, सौंठि, हल्दी,इन नादि काठानिक किरानों तथा शनसन, चाम, हाड़, केश, सींग, शहद इनको भझाला (दुकान) नाही करें। तथा शीशा, शोरा इत्यादिक हिंसक व्यापार नाही करें। इनमें खेटक समान दोष जानि, दयामूर्ति रोता व्यापार नाही करें। और काष्ठ-पाषाश चित्रामकी पुतलीं तथा देव-मनुष्य-पशुको स्थापनाका आकार बिगाड़े, तो खेटक समान दोष होय। और सतरंज मैं नाम-निक्षेपकै धारी जीव-हस्ती, घोटक मनुष्य राजादिक ताके हार-जीते, खेटक समान दोष होय। तात धर्मात्मा सतरंज तें नाहीं खेलें। और वन में, घर में अग्नि लगाये खेटक समान दोष है। तथा परजीवकों भयकारी मार-मार शब्द नाहीं कहैं। और वृक्ष, बेल, घास, माड़ी नहीं छेदें। वस्त्र धूप विर्षे नाही नाौं। चोपट राह में खटमलनकी खाट नाही झाड़ें। पर जीवन कू शोक नहीं करावें और मर्यादा ते जभिक भार, जीवन पै नाही लादे । भाड़ा किया होय तो वाहन 4 छिपायके अधिक भार नहीं धरै । इत्यादिक कहे कार्य धर्मात्मा-दयावान् अपने व्रतका लोभी अपने व्रतको रक्षाकौं ये पाप नहीं करें। और जुबा लोख दयावान् नहीं मारें। सर्व जीव आप समान जानि सर्वको रक्षा. करें। और जे दया रहित दुर्गति-गामी अज्ञानी जीव परकौं शस्त्र मारते दया नहीं करें । अस अपने तनमें तनिकसा काटा लगे तो कायर होय दुख माने । सो ये कठोर बुद्धि परके शस्त्र कैसे मारे हैं? आप तनकसा भय सनै तौ हिपता फिरें भय करि कंपायमान होय। अरु पापी जन दीन-पशन नन शस्त्र चलावतें नहीं करें! हैं। सो ताके खेटक-व्यसन कहिये । देखो जब आप रशमें जाय तो अपने तनकी रक्षाकों वसतर पहिने। ६३ | शिरपे टोप धरें। आगे उरस्थलमें बाड़ी ढाल धरै। तो भी पापी-कायर चित्तका धारी डरता-डरता जाय है। ताक दीन पशनके तनमें निशंक वनमें फिरते दीन जीवन कं दगा करि जालमें पकड़ि शस्त्र मारते दया नहीं भावें।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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