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________________ Yun वंशके हैं। सो इन वंशोंके उपजे भव्यात्मा, उज्ज्वल आचारी हैं। सो आमिष को छोवें भी नाहीं हैं। जो दयावान पुरुष हैं सो तो ऐसी वस्तु देखते ही भाग हैं तथा जे भव्यात्मा आमिष त्यागी हैं। सो अपने व्रत को । रक्षा को ऐतो वस्तु नहीं खोथ हैं, जिनके खाये मांस का दोष लागें। त्रस जीवन के कलेवर का नाम मास है। 'ताते जा वस्तु मैं उस जीव उपजै तथा जो त्रस का कलेवर होय, सो वस्तु आमिष त्यागी नहीं खाय है। सो जहां-जहां त्रस उपॐ तथा नस का कलेवर है; तेते स्थान बताइये हैं। सो अनगाल्या जलमैं, दुहे पीछे दौथ घड़ी उपरान्त के कच्चे दूध विषै और मर्यादा पूर्ण हुए आटे वि, इनमैं बस जीवन की उत्पत्ति है। सो आमिष त्यागी, ये तीन वस्तु नहीं खांय और चर्म का तेल-घृत-जल इन आदि और रस जाति वस्तु, भ्रस जीव का उत्पत्ति का स्थान है तथा रात्रि का पोसा आटा, बन बीन्धा अन्न, फड़ी वस्तु. रात्रि की पकायो हल्वाई के घर | की बनी वस्तु, दुकानदार की दुकान- बिता श्राटा, होगा मधु इत्यादि वस्तु, सामिष त्यागी नहीं खाय और अोला, घोरबरा, निशि भोजन, बैंगन, बहु बोजा, संधारणा, बड़ फल, पोपल फल, उदम्बर फल, कठूम्बर फल, पाकर फल, कन्दमूल, मिट्टी विष, आमिष, मधु, मक्खन, मदिरा, तुच्छ फल, अचार, चलित रस और अजान फल । ये बाईस अभन्न आदि वस्तु आमिष त्यागी नहीं खाय और रात्रि बसी कांजी और गुड़ दही मिलाय केव द्विदल दाल दही तें मिलाय नहीं खाय। साधारण फल-फूल-बौड़ी ये वस्तु आमिष त्यागी नहीं खाय और जै बमक्ष्य, इस विवेको के ज्ञान मैं आवै, सो अपने व्रत को रक्षा के निमित्त अतिचार जानि, नाहीं साय। ये मामिष व्यसन महापाप का स्थान जानना और भी देखो। मांस भती को संसार निन्दे है और केतेक महाजिला लोलुपी जिनके कुल में मांस नहीं लेंय। सो जीव, मांस की नकल को तरकारी बनाय खावें हैं। तिनको भी जामिष खाये का सा दोष लाग है। मौस मक्षीको नरक मैं ताका तन काटि ताहो की खुवावें हैं तातें आमिष का विवेकी नहीं तो खांय, नहीं खाते देख अनुमोदना करें, नहीं अपने व्रतको अतीचार लगावें। सो आमिष-त्याग व्रत जानना। इति आमिष व्यसन । २ । आगे सुरापान व्यसन लिखिये है। जो मन-वचन-काय करि सुरापान मैं रत होय ताको मदिरा व्यसन कहिये है। सो जे विवेक के धारी व यश के लोभी हैं ते या व्यसनकौं तजें हैं और जे लज्जा रहित अज्ञानी, नीच कुली पुरुष हो हैं; ते सुरापान को लैंय हैं। ये व्यसनी महामूरख दामकं खोय निन्दा जपाजें हैं। B1EE ४७७
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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