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________________ Yor सिर का ताज हारथा इत्यादिक सर्व घर का सरंजाम स्त्री-वाहनादि धन हारे। ताके दुःख को-पाप को कथा, कहांताई कहिये ! तातें कुगति दुस्ख ते डरि, गंजफा भी तजना योग्य है। तब द्यूतकारने कही। मंजफर भी पाप रूप है, सो हमने जान्या। परन्तु अल्प से धन से मूठि-दाव विष खेलना, यामैं कहा पाप? सो कहो? ताका समाधान-जो हे भव्य ! मूठोका खेल है सो लौकिकमैं लुच्चनका है सो प्रथम तौ जो देख, सो लुच्चा कहै । चोर-ज्वारी कहै । हारे, तौ चोरी करनेका उपाई होय । ताते हे भव्य ! ऐसे भावनमें बड़ा पाप होय । यामैं ऐता पाप लेके, अपयश लेके खेलिये, सो बड़ाईं कहा ? सो विचार देखो। इस भव निन्दा, अरु पर-भव दुर्गतिके दुख होय । तातें तजता ही योग्य है। तब द्यूतकार बोल्या। जो जुवा तां पाप-मयी जान, मैंने तजा। परन्तु व्याजके निमित्त द्यूतवारेन • कर्ज देना, यामैं पाप कहा ? ताका समाधान-जो हे भव्यात्मा 1 जुमाका धन ही महा पापकारी है। जैसा पाप, दुयत रमनेमें होय । तैसा ही पाप, साके धन लेनेमें होय है। तात मन, वचन, काय करि तजना योग्य है। तब दुयतकारका चित्त दुयतमें पाप जानि, शंका को प्राप्त भया-डरचा। तब फेरि प्रश्न किया जो जुआमैं तौ पाप है, सो हमने तजा। परन्तु जीते 4 लेय, तामैं तो पाप नाहीं है? ताका समाधान-जो है भाई । ममी नशार होय, लकी तैः पीत राहै । आप को नहीं देय, ताकी हार चाहै। ऐसे परकी हार-जीत, रूप परिणाम रास। सो अल्प भोगके योगके निमित्त तें पराया बुरा चाहै। सो पापी ही जानना। तातें जीते 4 | द्रव्य लेना, योग्य नाहीं। तब युतकार कही, दुयतको जीतका माल भी नहीं लेंय । परन्तु हमारे घर विर्षे ठाम बहुत है, सो रात्रि कौं बैठने कों जगह देय, भाड़ा प्रमाण, जीते ये द्रव्य लेंय, तो कहा दोष ? सो कहो। ताका समाधान-है भाई, इयतकार कौं घर ल्याय जुवा खिलाने। सो तो प्रत्यक्ष पाप है। तिनका सहाई होय जुवा रमावै, सो दुयत कैसा पाप पावै है। हे भव्य, जाका संग किये ही पाप लागे। तो घर ल्याये, मंगल कहाँ ते । होय? तातें घर ल्याय, सहाय करि दुयत रमावना, योग्य नाहीं। तब दुयतकार ने कहीं, घर ल्याये भी पाप है, सो जान्या । सो नहीं ल्यावे। परन्तु हमारी देखनेकी अभिलाषा रखा कर है, सो देखनेमें पाप कहा? ताका | समाधान-हे माई। देखने में पाप बहुत है। खेलनहारेका तौ घर-धन लाग है। सो तो व्यसनी होय, लखा छोडि.! जग-निन्दा अङ्गीकार करि, त खेलना शुरू किया। सो तो लोमके योग तैं, ताकौ तौ अर्थ-पाप लागें है। नाहा है ? ताका आप को नहीं दे भोगके योग
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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